भोपाल
चरक जयंती श्रावण शुक्ल नाग पंचमी 2081 संवत इस बार 9 अगस्त 2024 को है। ईसा से लगभग 200 वर्ष पूर्व चिकित्सा ग्रंथ लुप्त हो गए थे । यह पूरे भारतीय जनमानस और विश्व के लोगों के लिए अत्यंत ही संकट का दौर था। जब सारी मानवता त्राहि-त्राहि करने लगी जब सारी धरती के लोग कष्ट से मरने लगे। जब समाज अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगा जैसा कि भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता में प्रतिज्ञा की, जब-जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं आऊंगा। जब जब अधर्म रूपी रोगों का साम्राज्य होगा। पाप का साम्राज्य होगा तब- तब मैं प्रकट होउंगा। तब भगवान शेषनाग स्वयं इस धरती पर विचरण करते हुए आये और उन्होंने देखा कि जनता कितने कष्ट में है कितनी दुखी है। उनका हृदय द्रवित हो गया, करुणा से भर उठे और उन्होंने कपिष्ठल नामक गाँव जो कश्मीर में पुंछ के पास स्थित गांव है, वहां पर वेद वेदांग नामक एक वैदिक ब्राह्मण के घर में श्रावण शुक्ल नाग पंचमी के दिन जन्म लिया। शेषनाग का पूज्य दिवस अवतरण दिवस श्वेत वाराह पुराण में स्वयं ब्रह्मदेव ने नाग पंचमी का दिन बताया है। इस कारण से महर्षि चरक के जन्मदिन को हम श्रावण शुक्ल पंचमी नाग पंचमी मनाते हैं। महर्षि चरक ने वेद उपनिषदों का अध्ययन करने के उपरांत आयुर्वेद का अध्ययन प्रारंभ किया। उन्होंने महर्षि पुनर्वसु आत्रेय के द्वारा उपदिष्ट और आचार्य अग्निवेश के द्वारा प्रणीत लिखित ग्रंथ अग्निवेश तंत्र को खोजा। उसके छिन्न-भिन्न अंशों को सहेजा सम्हाल।जो बड़ी मुश्किल से उनको प्राप्त हुए और उस ग्रंथ को अग्निवेश तंत्र को जो कि पूर्ण नहीं था उस समय उसको धीरे-धीरे करके लेखन कार्य प्रारंभ किया। औषधियों का चयन करना, औषधियों के बारे में खोजना,उनका प्रयोग किया। इस प्रकार से चरक संहिता का वर्णन लिखना प्रारंभ किया। जिसमे मानव जीवन रोग चिकित्सा का वर्णन है। सबसे महत्व की बात चिकित्सा जगत में उन्होंने चिकित्सा सिद्धांत दिए। वह अपने आप में अप्रतिम कार्य था ।पूरी मानव सभ्यता, मानव समाज, पृथ्वी उनके उपकार कभी नहीं भूल सकती। ऐसे मनीषी का जन्म भगवान के तुल्य ऐसे सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक का जन्मदिन मनाना हम चिकित्सकों का ही नहीं इस मानव जाति का परम कर्तव्य है। आभार प्रदर्शन है। यह धन्यवाद है ऐसे व्यक्ति के लिए जिन्होंने मानव समाज को इस पूरी धरती को रोगों के भय से दूर किया। चिकित्सा सिद्धांतों की स्थापना की।
विश्व के प्रथम चिकित्सक शेषावतार महर्षि
अथर्ववेद के उपवेद और पंचमवेद आयुर्वेद के आदि चिकित्सक महर्षि चरक को भगवान शेषनाग का अवतार माना जाता है। उनका जन्म ईसा से 200 वर्ष पूर्व कश्मीर में पुंछ के पास कपिष्ठल नामक गांव में हुआ था। श्वेत वाराह पुराण के अनुसार उनका जन्मदिन श्रावण शुक्लपक्ष नागपंचमी (इस बार 9 अगस्त 2024) को मनाया जाता है। उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर में भगवान शेषनाग के कपाट भी आज ही के दिन खोले जाते हैं। उन्होंने महाभारत काल के पश्चात खण्डित हो चुके कायचिकित्सा(मेडिसिन) के महान ग्रंथ अग्निवेश-तंत्र का प्रतिसंस्कार (पुनर्लेखन) कर चरक-संहिता रूपी कालजयी रचना प्रदान की।
बौद्ध धर्म के नास्तिक दर्शन काल में अहिंसा के सिद्धांत के कारण राजव्यवस्था द्वारा वैदिक और शल्य क्रियाओं का निषेध कर दिया गया था। दूसरी तरफ बौद्ध धर्म के "स्वभावो परमवाद" के सिद्धांत की आड़ में (यानी शरीर तो स्वभाव से ही बनता बिगड़ता है इसलिए चिकित्सा की क्या आवश्यकता है ऐसा कहकर) वैद्यों के चिकित्सा कार्यों का विरोध किया जाता था। कहा जाता है कि बौद्ध सम्राट बिम्विसार को भी बवासीर की तकलीफ़ हुई थी, लेकिन अहिंसा के सिद्धांत के चलते उन्होंने शल्य चिकित्सा को अंगीकार नहीं किया। जिस पर आचार्य जीवक ने एक लेप बनाकर अर्श को ठीक किया था। सम्राट अशोक के बाद चिकित्सा कार्यों पर शासन द्वारा ऐसा प्रतिबंध करीब 50 वर्ष तक रहा, जिसे भारत के मेडिकल-इमरजेंसी का काल कहा जा सकता है। मान्यता है कि ऐसे कालखंड में अनन्त भगवान-शेष छद्म रूप में धरती पर विचरण करने आए। रोगों से पीड़ित मानवता को देखकर करुणावश उनका हृदय द्रवीभूत हो गया और उन्होंने वेद-वेदांग नामक ब्राह्मण के घर जन्म लिया।
ऐसे समय में रोगों से पीड़ित मानवता की सेवा के लिए उन्होंने भारत भर में घूमते हुए चिकित्सा का कार्य और उसका प्रचार किया। इसी कारण "चरकात् चरक:" नित्यप्रति घूमने के कारण उनका नाम चरक पड़ा। उन्होंने "आर्ता: पुत्रवत आचारेत्" यानी रोगी से पुत्र के समान व्यवहार करने सहित अनेक सिद्धांतों का प्रतिपादन कर चिकित्सक समाज के लिए एक मिशाल कायम की।
आचार्य चरक ने आज से 2150 वर्ष पूर्व चरक संहिता का लेखन किया था। चरक संहिता मूल रूप से अग्निवेश तंत्र का ही परिष्कृत ग्रंथ है।पुनर्वसु आत्रेय द्वारा उपदिष्ट सूत्रों को, महर्षि अग्निवेश ने अग्निवेश तंत्र में निबंध किया था। काल क्रम से वह ग्रंथ लुप्त हुआ तथा आयुर्वेद चिकित्सा के प्रति भी समाज में उपेक्षा हुई। जिसके कारण मानवता और सारा विश्व रोगों से ग्रस्त हुआ।
आचार्य चरक ने ऐसे समय में जन्म लेकर और पूरे जीवन भर परिभ्रमण करते हुए चंक्रमण करते हुए, औषधीयों के माध्यम से रोगों की चिकित्सा की और इन चिकित्सा के प्रयोगों को उन्होंने चरक संहिता के ग्रंथ में स्थान दिया। चरक सूत्र स्थान के प्रारंभ में छः पदार्थों के महत्व को प्रतिपादित किया। सामान्य, विशेष, समवाय, द्रव्य, गुण एवं कर्म के महत्व को प्रतिपादित किया। दिनचर्या का व्याख्यान विस्तार से किया। ऋतु अनुसार हमें क्या भोजन करना चाहिए, कैसे भोजन करना चाहिए, किन दोषों का प्रकोप है कैसे समान है कौन सी व्याधि किस ऋतू में हो सकती हैं इन सब बातों को उन्होंने बताया।
ऐसे महापुरुष जिन्होंने इतने हजारों वर्ष पूर्व इस प्रकार के वैज्ञानिक चिकित्सा सिद्धांतों की प्रस्तुति देकर मानवता को और विश्व को हमेशा हमेशा के लिए रोगों से मुक्त होने का एक सूत्र दिया,उनका स्मरण करना उनका प्रातः स्मरण करना हमारा कर्तव्य है।महर्षि चरक ने ही रसायन प्रकरण में च्यवनप्राश का उल्लेख किया है च्यवनप्राश एक ऐसा रसायन है जिसका सेवन करने से व्यक्ति को जरा नामक व्याधि नहीं होती है। बुढ़ापा नहीं आता है और व्यक्ति की समस्त धातुएं श्रेष्ठ निर्मित होती है जिसके कारण व्यक्ति में ऊर्जा और उत्साह का स्तर उच्च बना रहता है। च्यवनप्राश के उल्लेख के समय ही महर्षि चरक ने उसके लाभ बताते हुए कहा कि च्यवनप्राश का उपयोग श्वास और केश रोग में विशेष रूप से करना चाहिए इस सिद्धांत के आधार पर समझ में आता है कि चवनप्राश श्वसन व तंत्र के रोगों पर अच्छी तरह से कार्य करता है। कोरोना में भी कोरोनावायरस फेफड़ों में जाकर फेफड़ों की कोशिकाओं को नष्ट करता है तथा श्वसन संस्थान को अपना स्थान बनाता है अतः कोरोना के रोगियों को जब च्यवनप्राश दिया गया तो उनको इससे अत्याधिक लाभ हुआ। अतः आचार्य चरक के द्वारा दिया गया यह रसायन भी मानवता के लिए अत्यंत कल्याणकारी रहा। इसके अतिरिक्त वर्तमान में प्राप्त होने वाली बहुत सी ऐसी बीमारियां हैं जिनका चिकित्सा आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के द्वारा संभव नहीं है। जितने भी प्रकार के कुष्ठ अर्थात त्वक रोग हैं, उन सभी की चिकित्सा महर्षि चरक ने दी है।जिसको दोष अनुसार चिकित्सा करने से निश्चित रूप से वैद्य को यश और रोगी को लाभ प्राप्त होता है।
इसके अतिरिक्त मानस रोग विज्ञान में भी आचार्य ने रोगों का और चिकित्सा सिद्धांतों का उल्लेख किया है। इसी प्रकार ग्रहणी दुष्टि भी एक रोग है। आधुनिक चिकित्सक इसको बाउल सिंड्रोम कहते हैं।ग्रहणी दुष्टि की चिकित्सा के बारे में भी महर्षि चरक ने विस्तार से वर्णन किया है। प्रमेह नमक व्याधि इस समय संसार के लिए एक चुनौती बनी हुई है।मधुमेह एक प्रमेह का भेद है।
आचार्य चरक ने प्रमेह के भी 20 भेदों का वर्णन किया और बताया कि कफ कारक और कफ को बढ़ाने वाली जीवन शैली से ही प्रमेह रोग होते हैं।प्रमेह की चिकित्सा भी आचार्य ने विस्तार से बताई और कहा कि शरीर को श्रम साध्य बनाने से और अपने जीवनचर्या को सुधारने से प्रमेह की चिकित्सा होती है।
आचार्य चरक ने ही आंवला और हल्दी, त्रिफला आदि रसायनों के माध्यम से प्रमेह की चिकित्सा के सूत्र दिए,जो वर्तमान में भी अत्यंत प्रासंगिक है। आधुनिक चिकित्सा में जहां बहुत सारे साइड इफेक्ट्स होते हैं वहीं आयुर्वेद चिकित्सा प्रमेही की चिकित्सा तो करती ही है, इसके अतिरिक्त शरीर में होने वाले ह्रास को भी रोकते हैं और शरीर को अधिक ऊर्जावान बनाती है। आचार्य चरक ने अन्य रोगों यथा हृदय रोग,श्वास रोग,वात व्याधि,कास रोग, शोथ रोग(सूजन) आदि के चिकित्सा सिद्धांतों का वर्णन किया है।
ऐसे महर्षि जिन्होंने इस प्रकार चिकित्सा को आधार बनाकर मानवता को इस संकट से दूर करने के लिए इस ग्रंथ का निर्माण किया। उनकी जयंती मनाना उनका जन्मदिन मनाना हमारा कर्तव्य है।
प्रणाम करते हैं, वंदन करते हैं, अभिनंदन करते हैं ऐसे महर्षि चरक का, आइए सभी मिलकर उनका जन्मदिन मनाएं। इस बार चरक जयंती 9 अगस्त 2024 को है। धूमधाम से महर्षि चरक का जन्मदिन मनायें और समाज को पूर्ण स्वस्थ और रोग मुक्त करने का संकल्प लें।
चरक संहिता के शिष्योपनयनीय अध्याय से संकलित चरक-शपथ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के हिप्पोक्रेटिस-ऑथ से अधिक समीचीन प्रतीत होती है। आजकल देशभर के मेडिकल और आयुर्वेद कॉलेजों में प्रवेश लेने वाले छात्रों को चरक शपथ की प्रतिज्ञा करवाई जाती है। हिमाचल प्रदेश के एक गांव का नाम आज भी चरेख-डांडा है। मान्यता है कि इसी पहाड़ी पर महर्षि चरक ने तपस्या की थी। इस स्थान पर विश्व आयुर्वेद परिषद के प्रयासों से महर्षि चरक की मूर्ति स्थापना की गई है। जहां आसपास के आयुर्वेद महाविद्यालय के छात्र चरक जयंती के अवसर पर चरक-यात्रा आदि का आयोजन करते हैं।
हमें चिकित्सा के इन महान वैज्ञानिक का जीवन स्मरण कर इस आर्थिक भौतिकवादी युग में नैतिक सुचिता (मेडिकल एथिक्स) को अपनाना चाहिए।और इस अवसर पर चिकित्सा शिविर, औषधीय पौधारोपण, स्वास्थ्य प्रबोधन आदि का आयोजन कर महर्षि चरक को उनके अवदान के लिए श्रद्धांजलि अर्पित करनी चाहिए।
जय आयुर्वेद।
चरकाचार्यो विजयते।।
चरक जयंती की शुभकामनाएं।