बिहार-अररिया में ढहे 12 करोड़ के पुलों से गुणवत्ता पर उठ रहे सवाल

अररिया.

अररिया में हाइवे छोड़ जब हम बैरगाछी से कुर्साकांटा की ओर बढ़े तो कुछ किलोमीटर जाने के बाद ही समझ में आ गया कि कुर्साकांटा-सिकटी को जोड़ने के लिए बकरा नदी पर बन रहा पुल क्यों ताश के महल की तरह गिर गया। कुर्साकांटा तक का सफर मुश्किल था और उससे आगे कच्चे रास्ते पर चारपहिया लेकर जाना लगभग असंभव जैसा। कभी चक्का कीचड़ में फंस रहा था तो कभी गाड़ी के फिसलकर किनारे बाढ़ के पानी में गिरने का डर।

मतलब, सिर्फ निरीक्षण की जिम्मेदारी उठाने वाले सरकारी इंजीनियर इस काम के लिए जद्दोजहद शायद ही करते होंगे। 18 जून को यह पुल गिरा था और हम लगभग एक महीने बाद यहां गए थे। हमें सरकार की रिपोर्ट का भी इंतजार था। जांच करने वाले अभियंता ने नदी की वक्र चाल को इसका दोषी माना।
उसके बाद जब हम यहां पहुंचे तो बकरा नदी की चाल असामान्य भी नहीं नजर आई। गूगल मैप्स भी दिखाता है कि जहां पुल बन रहा था- वहां पानी आता-जाता रहता है। मतलब, गर्मी में हट जाता है और फिर बारिश-बाढ़ में रह जाता है। फिलहाल बकरा नदी के पररिया घाट पर बन रहे पुल के पास पानी करीब दो फीट घट गया था, इसलिए मलबे तक हमें पहुंचाने वाले नाविक को बहुत घुमाकर ले जाना पड़ा। अपनी आंखों से इस कथित पुल को देखकर एक ही बात मन में आई- कोई कैसे इस पुल के ध्वस्त होने के लिए नदी को जिम्मेदार बता सकता है!

नदी में खड़े होने के लिए बना था यह पुल?
यह सड़क के ऊपर बना फ्लाईओवर नहीं था। यह नदी पर बनाया गया पुल था, जिसे पानी में खड़े होकर इलाके के लोगों की जीवनरेखा बनना था। लेकिन, भीषण बाढ़ के पहले नदी में थोड़ा पानी बढ़ते ही भरभरा कर गिर गया। पुल के मलबे के करीब पहुंचते ही इसके हजार टुकड़े जहां-तहां गिरे पड़े दिखे। बकरा नदी की गहराई के हिसाब से पिलर को 40 फीट अंदर तक होना चाहिए, लेकिन स्थानीय लोग बताते हैं कि इस तकनीकी बात का ख्याल नहीं रखा गया। नदी के जिस तरफ पुल है, उसके दूसरी तरफ रहने वाले लक्ष्मी मंडल कहते हैं- “पुल बीच से गिर जाता और पिलर खड़ा रह जाता तो आप भरोसा शायद ही करते, लेकिन देखिए कि पिलर भी झुक गया है पूरी तरह से। हमने कुछ मीडियाकर्मियों को भी यह बातें बताईं, लेकिन कहीं वह छपा नहीं। पिलर की गहराई सही नहीं है, वरना इतना ही पानी आने पर इस तरह धंस नहीं जाता।” कुर्साकांटा के रहने वाले युवक प्रिंस कुमार नाव पर हमारे साथ थे। उन्होंने कहा- “बड़े लोग भी अपने बचपन से इस पुल का इंतजार कर रहे हैं, हमने तो बनते और गिरते- दोनों देख लिया। यह बन जाता तो दो-तीन किलोमीटर दूर नेपाल से आवाजाही का एक बढ़िया रास्ता हो जाता। थोड़ा व्यापार भी बढ़ता। इस गिरे पुल से थोड़ा आगे बकरा टेरा पुल वर्षों से ठीकठाक स्थिति में है। पररिया घाट वाला पुल तो 2021 में बनना शुरू हुआ और अब गिर गया।”

काम रोकने पर जांच होती तो बेइज्जती नहीं होती
राज्य सरकार ने एक दर्जन से ज्यादा नए-पुराने पुल-पुलियों के गिरने के बाद जांच कराई और एक दर्जन से ज्यादा अभियंताओं को निलंबित किया गया। अररिया के सिकटी क्षेत्र में बकरा नदी का यह पुल केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के 12 करोड़ रुपये से बिहार का ग्रामीण कार्य विभाग बनवा रहा था। इस पुल के इस तरह से गिरने में नदी को दोषी बताने वाला विभाग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीबी मंत्री अशोक चौधरी के पास है। कार्रवाई के नाम पर मंत्री ने ठेकेदार सिराजुर रहमान के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर उसे विभाग में ब्लैक लिस्ट करने का निर्देश दिया है। लेकिन, क्या यह काफी है? इस सवाल का जवाब पुल गिरते समय का वीडियो बनाने वाले सिकटी विधायक के प्रतिनिधि मनोज कुमार देते हैं- “ठेकेदार बड़े आदमी हैं। काम जब शुरू हुआ था, तभी क्वालिटी खराब होने की बात पर हमलोगों ने काम रोका था। हमलोग पहरा देने लगे तो देखा कि गिट्टी में इसी नदी की बलुआही मिट्टी और अपने हिसाब से सीमेंट मिलाकर काम किया जा रहा था। बहुत टोका गया तो रात में यह लोग काम निबटाने लगे। क्वालिटी को लेकर काम रोका और विभागीय इंजीनियर को बुलाने की मांग की तो थाने से टांग नहीं अड़ाने का दबाव बनाया गया। आरोप लगाया कि हम लोगों को पैसा चाहिए, इसलिए ठेकेदार को तंग कर रहे हैं। अगर उन शिकायतों और रोक-टोक पर विभाग ध्यान देता तो बिहार की ऐसी बेइज्जती नहीं होती।” अररिया के भाजपा सांसद प्रदीप कुमार सिंह और सिकटी के भाजपा विधायक विजय कुमार मंडल इस पुल के गिरने में संवेदक के साथ विभागीय लापरवाही की बात पहले ही कह चुके हैं, जिसपर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ध्यान भी दिया। लेकिन, सवाल उठता है कि भ्रष्टाचार के ऐसे पुल चालू होने के बाद गिरने पर लोगों की जान ले लेते तो भी क्या प्राथमिकी और निलंबन की औपचारिकताओं से संतोष कर लिया जाता?

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