नई दिल्ली
एक लड़की ने लड़के पर नशीला पदार्थ खिलाने और दिल्ली ले जाकर रेप करने का आरोप लगाया। नतीजतन लड़के को 4 साल की जेल काटनी पड़ी। इसी साल मई की शुरुआत में बरेली की एक सत्र अदालत के सामने यह मामला आया तो कोर्ट में वह लड़की गवाही के दौरान अपने आरोपों से मुकर गई, जिस पर कोर्ट ने लड़के को बरी कर दिया। हालांकि, फिर भी वो जेल में 4 साल की जेल काट चुका था। उसे उस गुनाह की सजा मिली, जो उसने की ही नहीं थी। मामला 2019 का था,जब लड़के पर अपहरण और रेप का मुकदमा दर्ज किया गया था। कोर्ट ने लड़के को दोषमुक्त किया और लड़की को भी उतनी ही यानी 4 साल जेल की सजा सुनाई।
आज बात करते हैं भारतीय न्याय संहिता (BNS) की जिसने 1 जुलाई 2024 से इंडियन पीनल कोड की जगह ली है। नए कानूनों में से एक सेक्शन 69 के बारे में लीगल एक्सपर्ट से जानते हैं। दरअसल, माना जा रहा है कि धारा 69 को लागू करके एक तरह से रिलेशनशिप में धोखा देने या ब्रेकअप को गैरकानूनी बना दिया गया है।
पुरुषों से वसूली के लिए झूठे मुकदमे लिखवाना ठीक नहीं
कोर्ट ने कहा, महिलाओं के ऐसे कृत्य से जो असली पीड़िता हैं, उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। यह समाज के लिए बेहद गंभीर है। अपने मकसद की पूर्ति के लिए पुलिस व कोर्ट को माध्यम बनाना आपत्तिजनक है। महिलाओं को पुरुषों के हितों पर आघात करने की छूट नहीं दी जा सकती। अदालत ने ये भी कहा कि यह मुकदमा उन महिलाओं के लिए नजीर बनेगा जो पुरुषों से वसूली के लिए झूठे मुकदमे लिखाती हैं।
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क्या है धारा 69, यह रेप से कितना अलग
सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत कहते हैं कि भारतीय न्याय संहिता का सेक्शन 69 कहता है कि जो भी छल या धोखा देकर या शादी का वादा करके पार्टनर से संबंध बनाता तो ऐसा यौन संबंध रेप की कैटेगरी में नहीं आएगा। ऐसे मामलों में सजा होगी, जो कम से कम 1 साल और अधिकतम 10 साल तक हो सकती है और साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है। यह धारा उन मामलों में लागू होगी जो रेप की कैटेगरी में नहीं आते हैं।
ये आंकड़े एनसीआरबी के 2019 तक के हैं
कानून की नजर में क्या है धोखा देना
एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत बताते हैं कि धोखा देने का मतलब यह है कि पार्टनर को संबंध बनाने के लिए प्रेरित करना या नौकरी, प्रमोशन या शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाना। कानूनी रूप से लोचा यहीं पर है। अनिल सिंह कहते हैं कि सेक्शन 69 बेहद व्यापक है। इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। जिस तरह से रेप के झूठे मामले बढ़ रहे हैं, उसे देखते हुए अलग से इस पर कानून बनाया जाना जरूरी था। मगर, इसके बावजूद यह पुरुषों के लिए ज्यादा टेंशन देने वाला है। क्योंकि ज्यादातर रिलेशनशिप में ब्रेकअप होते रहते हैं। ऐसे में महिला पार्टनर के एफआईआर दर्ज कराने की आशंका बनी रहती है।
69 में ऐसा क्या है, जो पुरुषों के लिए टेंशन की बात
एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत के अनुसार, आप किसी भी रिलेशनशिप को यह साबित नहीं कर सकते कि वह ठीक से चल रहा है या नही। आप सभी मैसेज या फोन कॉल्स रिकॉर्ड नहीं कर सकते। सबसे बड़ी बात यह है कि आप यह कैसे साबित करोगे कि किसी ने धोखा या छल किया है या नहीं।
ईगो की लड़ाई में पुरुष पार्टनर को हो रही जेल
दिल्ली के साकेत कोर्ट में एडवोकेट शिवाजी शुक्ला बताते हैं कि सेक्शन 69 के तहत यह पहले ही मान लिया जाता है कि पुरुष ही आरोपी है। यह उस आरोपी का दायित्व हो जाता है कि वह खुद साबित करे कि वह निर्दोष है। बहुत सी महिलाएं ऐसी आती हैं, जब उनकी रिलेशनशिप खराब हो जाती है तो वह पुरुष पार्टनर को परेशान करने के लिए या अपने ईगो को शांत करने के लिए उस पर रेप का आरोप लगा देती हैं।
नौकरी या प्रमोशन के झूठे वादे को शामिल करना ठीक नहीं
एडवोकेट शिवाजी शुक्ला कहते हैं कि धारा 69 में नौकरी या प्रमोशन के झूठे वादे को शामिल करना ठीक नहीं है, क्योंकि शादी के वादे को प्रमोशन के वादे के साथ नहीं जोड़ा जा सकता। शादी का वादा प्यार और भरोसे पर टिका होता है। वहीं नौकरी या प्रमोशन एक तरह का फायदा लेना है।
पहले क्या था नियम, अब क्यों हटाया गया
अनिल सिंह श्रीनेत के अनुसार, भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 के तहत ‘धोखे से यौन संबंध’ के अपराध को परिभाषित नहीं किया गया था। हालांकि, उसकी धारा 90 कहती है कि यौन संबंध की वो सहमति अवैध मानी जाएगी जो तथ्य की गलतफहमी में दी गई है। यदि सहमति किसी व्यक्ति ने डर या दबाव में आकर दी है, तो वो भी मान्य नहीं होगी। ऐसे मामलों में आरोपियों पर धारा 375 (रेप) के तहत मुकदमा दर्ज होता था। उस वक्त शादी का झांसा देकर बनाए गए संबंधों को रेप की कैटेगरी में डाल दिया जाता था, जिसमें कठोर सजा होती है। आज लिवइन रिलेशनशिप या लड़के-लड़की के साथ रहने का चलन तेजी से बढ़ा है। ऐसे में आपसी सहमति से जब यौन संबंध बनाए जाते हैं तो उसे रेप की कैटेगरी में रखना ठीक नहीं था। कई मौकों पर अदालत कह चुकी है कि शादी का वादा करने का मतलब यह नहीं है कि कोई लड़की अपने पार्टनर के साथ संबंध बना ही ले। उसे तब भी इससे बचना चाहिए।
बदले के लिए पुरुष पार्टनर पर लगा देती हैं आरोप
एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत कहते हैं कि कई बार निजी भड़ास निकालने के लिए, किसी बात का बदला लेने के लिए, मुआवजा हासिल करने के लिए भी रेप के झूठे आरोप लगाए जाते हैं। यह भी देखा गया है कि रिलेशनशिप खत्म होने पर भी पुरुष पार्टनर पर रेप का आरोप लगा दिया जाता है। परिवार के दबाव में भी लड़कियां रेप का आरोप लगा देती हैं। 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई में कहा था कि जब भी किसी वजह से रिश्ता टूटता है तो महिला अपने निजी बदले के लिए इस कानून को हथियार की तरह इस्तेमाल करती हैं। वो सहमति से बनाए गए यौन संबंध को फ्रस्ट्रेशन में आकर रेप की घटना बता देती हैं। शादी का वादा करके सहमति से बनाए गए संबंधों के मामले में रेप और सहमति से संबंध के बीच स्पष्ट रेखा होनी चाहिए।
गर्भ गिराने का ऑर्डर हासिल करने के लिए भी रेप के झूठे मुकदमे
एडवोकेट शिवाजी शुक्ला के मुताबिक, कई केस ऐसे आते हैं, जहां रेप के झूठे मुकदमे इसलिए किए जाते हैं ताकि कोर्ट से गर्भपात कराने का ऑर्डर हासिल किया जा सके। यह एक खतरनाक ट्रेंड है, जहां गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए अनोखा तरीका ईजाद किया गया है। ऐसा उन मामलों में होता है, जहां लड़की कोर्ट में अपनी बदनामी और जिंदगी बर्बाद होने का हवाला देती है और कोर्ट से गर्भ गिराने की मंजूरी देने की अपील करती है। ऐसे में अक्सर वह जिसके साथ रिश्ते में रही, उस पर रेप के आरोप लगा देती है। वैसे यह मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 का भी खुला उल्लंघन है।
रेप के झूठे मुकदमों से खत्म हो जाती है पुरुष की लाइफ
एक लेखिका शहरयार एडीबाम की स्टडी- ’फाल्स रेप एलिगेशंस अगेंस्ट मेन इन इंडिया’ के अनुसार, रेप के झूठे मुकदमे की वजह से पीड़ित व्यक्ति की समाज में साख खत्म हो जाती है। हर कोई उसे संदेह की नजर से देखता है। इससे सोसाइटी में रेप को लेकर संवेदनशीलता खत्म होने लगती है। जो महिला वास्तव में पीड़ित है, उसे लोगों की सहानुभूति नहीं मिल पाती है। रेप के झूठे मुकदमे से आरोपी को ताउम्र नुकसान पहुंचता है। उस पर रेपिस्ट होने का तमगा लग जाता है। अवसाद, कुंठा, चिड़चिड़ापन जैसी मानसिक समस्याएं हो जाती हैं। कुछ मामलों में पीड़ित आरोपी को नौकरी से बेदखल कर दिया जाता है। कुछ मामलों में झूठे आरोपों के चलते पुरुष सुसाइड तक कर लेते हैं।
जब हाईकोर्ट ने कहा- 6 साल तक बनाए संबंध रेप नहीं
बीते साल कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा कि एक महिला मर्जी से 6 साल से ज्यादा समय तक अपने साथी के साथ शारीरिक संबंध बनाती है तो इसे रेप नहीं कहा जाना चाहिए। बेंगलुरु के इस मामले में महिला ने अपने पार्टनर पर शादी करने का झूठा वादा कर 6 साल तक रेप करने का आरोप लगाया था। कोर्ट ने इस केस को कानून प्रक्रिया के दुरुपयोग का सबसे अच्छा उदाहरण बताया।