आदिवासियों को साधने में जो दल हुआ सफल उसकी जीत तय, इस बार 18 लाख 38 हजार 547 वोटर लोकसभा चुनाव में करेंगे मतदान

रायपुर
छत्‍तीसगढ़ की रायगढ़ संसदीय सीट अनुसूचित जाति (एसटी) आरक्षित है। भाजपा, कांग्रेस के साथ अन्य पार्टियों को अच्छी तरह से पता है कि यहां सबसे ज्यादा मतदाता आदिवासी हैं, जो निर्णायक होते हैं। इनको साधने में सफल रहे तो जीत पक्की है। यहां ग्रामीण आबादी का प्रतिशत 85.79 है। कुल आबादी में आदिवासियों का हिस्सा 44 प्रतशित है, जबकि अनुसूचित जाति की आबादी 11.70 प्रतिशत है। लोकसभा चुनाव में इस बार भाजपा ने राधेश्याम राठिया को मैदान में उतारा है। 25 वर्षों बाद इस सीट से सारंगढ़ राजपरिवार की चुनावी वापसी हुई है। यहां से गोंड राजवंश की डा. मेनका सिंह कांग्रेस की प्रत्याशी हैं।

दोनों ही प्रमुख पार्टियों के प्रत्याशी पहली बार चुनाव मैदान में हैं और आदिवासी मतदाताओं को साधने के लिए तपती धूप में जमकर पसीना बहा रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी महतारी वंदन योजना और मोदी की गारंटी तो कांग्रेस प्रत्याशी महालक्ष्मी योजना से आदिवासियों को साधने में जुटे हैं। आदिवासी बहुल क्षेत्र में राठिया वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है।

वहीं, संसदीय क्षेत्र में गोंड और कंवर समाज के लोग भी बड़ी संख्या में हैं। राधेश्याम को यहां राठिया समाज से होने का फायदा मिल सकता है, हांलाकि अघरिया, यादव, साहू और क्रिश्चन समाज भी यहां निर्णायक भूमिका में रहेंगे।आदिवासी वोटर्स की संख्या रायगढ़ के आसपास सारंगढ़, धरमजयगढ़, लैलूंगा और खरसिया में ज्यादा हैं। रायगढ़ संसदीय क्षेत्र में विधानसभा की कुल आठ सीटें हैं। 2023 के विधानसभा चुनाव में यहां भाजपा और कांग्रेस में कड़ी टक्कर है। आठ में से चार सीटों जशपुर, पत्थलगांव, कुनकुरी और रायगढ़ सीट पर भाजपा का कब्जा है। वहीं, खरसिया, धर्मजयगढ़, सारंगढ़ और लैलुंगा सीट से कांग्रेस के विधायक चुने गए हैं। मुख्यमंत्री साय इसी सीट से चार बार सांसद रहे हैं।  

रायगढ़ संसदीय सीट से प्रदेश को मिले दो मुख्यमंत्री
रायगढ़ संसदीय सीट से प्रदेश को दो मुख्यमंत्री मिले हैं। प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री रहे अजीत जोगी वर्ष-1998 में इस सीट से सांसद चुने गए थे। हालांकि, इसके बाद 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में जोगी रायगढ़ छोड़ कर शहडोल चले गए थे, जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, वर्तमान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी इस सीट से सांसद रह चुके हैं।

वर्ष-1999 से 2014 तक चार बार इस सीट का संसद में प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस दौरान वे केंद्र में राज्य मंत्री भी रहे। वर्ष-1999 में अजीत जोगी ने जब इस सीट को छोड़ा तो कांग्रेस ने अपने पूर्व सांसद पुष्पा देवी सिंह को टिकट दिया था। साय उन्हें हरा कर पहली बार सांसद बने थे। वर्ष-2019 में भाजपा ने साय के स्थान पर गोमती साय को टिकट दिया था, जो विजयी हुई थीं।

राज्य गठन के बाद से भाजपा का कब्जा
रायगढ़ सीट पर अब तक 15 बार चुनाव हो चुके हैं। इस सीट से निर्वाचित होने वाले पहले सांसद राजा विजय भूषण राम राज्य परिषद पार्टी से चुनाव जीते थे। वर्ष-1977 में भरतीय लोक दल की टिकट पर नरहरि प्रसाद सुखदेव साय ने जीत दर्ज की थी। इसके बाद 80 और 84 में कांग्रेस पार्टी को यहां से जीत मिली थी। पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कांग्रेस पार्टी से अब तक के आखरी सांसद रहे हैं। वर्ष-1998 के बाद कांग्रेस इस सीट से नहीं जीती है। इसके बाद से ये सीट भाजपा का गढ़ बन गई है। राज्य बनने के बाद कांग्रेस एक बार भी रायगढ़ नहीं जीत पाई है।

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