पितृत्व हमारी विशेषता, अस्पृश्यता भारतीयता के मूल में नहीं: वी भगैया

रायपुर। आत्म अनुशासन, ध्यान, योग जीवन का आधार है यह डॉ अरुण दाबके ने अपने व्याख्यान में कहा। संक्षिप्त व्याख्यान में सुदर्शन जी के एक हृदय परीक्षण का वाक्या भी सुनाया। कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता वी. भगैया ने प्राथमिक पंक्तियों में कहा साधना क्रम में एक महान विभूति थे सुदर्शन जी। सामाजिक समरसता सम्पूर्ण समाज के लिए आज चुनौती है। पूर्ण सृष्टि का सृजन दैवीय परमेश्वर तत्व से हुआ है। छूत अछूत आया कहाँ से, जाति निर्धारण में किसी व्यक्ति विशेष का हाथ नहीं हो सकता है। यह मानवता का हिस्सा नहीं है। यह वेद में भी उल्लिखित नहीं है। समाज में पौराणिक व्यवस्था हो गई है।
चातुर्वर्णम वयं शुद्रम; ज्ञान का, दान का समानता का समान्य मनुष्य भाव ही है भारतीयता। भारत की विशेषता ही मूल संस्कृति है। दुगुर्णों का समावेश होता चला गया। अस्पृश्यता का दोष हमारा है, यह दोष हम सभी मिलकर दूर भी करेंगे। स्वामी दयानंद सरस्वती, संत तुकाराम, महान वाल्मीकि जी के कार्यों का अपने जीवन में अनुसरण करें। सहज बोध को वाक्यांश से समझाया, सोशल स्टेटस उच्च होने के बाद भी सहज रहें यही भारतीयता है। आंध्र के उच्च पद आसीन भोई भीमन्ना को तथा रमन्ना को रमन्ना की माता ने अपना बेटा बताया, तब भीमन्ना जी भाव विभोर हो गए और रो पड़े। यह है भारतीयता। भगैया जी ने वक्तव्य में आगे कहा, भारतीय समाज में संबंधों का विशेष महत्व है। संबंधों का विशेष भाव क्या है? कन्या पूजन, जहाँ हम हैं वहीं सामाजिक रीति से संबंधों का निरंतरता का भाव। हमारी सरलता ही आधार है, इस समरसता का।
कार्यक्रम का प्रारंभ; डॉ.रवि श्रीवास के अतिथि परिचय के साथ हुआ। अतिथियों के स्वागत हेतु मोहन पवार, राजेंद्र सिंह, एवं दिग्विजय भाखरे द्वारा होने के बाद स्वागत भाषण भास्कर किन्हेकर, अध्यक्ष सुदर्शन प्रेरणा मंच, द्वारा दिया गया। इसके बाद अध्यक्षीय उद्बोधन डॉ. अरुण दाबके ने दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ प्रभात मिश्र द्वारा किया गया। कार्यक्रम समापन पर आभार प्रदर्शन शिवनारायण मुंदड़ा द्वारा होने के बाद, उन्होंने अल्पाहार हेतु सभी को आमंत्रित किया गया।
वी.भगैया की एक संक्षिप्त प्रोफाइल वर्तमान तेलंगाना राज्य के मेडक जिले के रहने वाले वी भगैया ने हैदराबाद के निजाम कॉलेज से स्नातक किया है। छात्र जीवन में ही वे संघ के संपर्क में आए। स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद भगैया ‘प्रचारक’ बन गए और उन्होंने अपना पूरा जीवन आरएसएस के लिए समर्पित कर दिया। वे 1971-75 के दौरान विशाखापत्तनम के विभाग प्रचारक, 1975-80 के दौरान प्रांत शारिक प्रमुख और विजयवाड़ा विभाग के प्रचारक रहे। बाद में उन्होंने दक्षिण-मध्य क्षेत्र (दक्षिण-मध्य क्षेत्र) के लिए सह क्षेत्र प्रचारक के रूप में कार्य किया, जिसमें कर्नाटक और संयुक्त आंध्र प्रदेश शामिल थे। वी भगैया जी ने हिंदुओं की एकता पर वहां आयोजित कार्यक्रमों में बोलने के लिए म्यांमार जैसे कई देशों का दौरा कर चुके हैं। एक बहुत ही वाक्पटु वक्ता, वी भगैया तेलुगु, हिंदी और अंग्रेजी में धाराप्रवाह बातचीत कर सकते हैं और हमेशा अपने संदेश को शक्तिशाली रूप से व्यक्त करते हैं। एक हमेशा मुस्कुराते रहने वाला व्यक्तित्व, उनका पतला, स्वस्थ शरीर और आचरण उनकी 65 वर्ष की आयु को चुनौती देता है।

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