छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डॉक्टरों की बड़ी लापरवाही सामने आई है. एक गर्भवती महिला मेडिकल कॉलेज में डिलीवरी के लिए भर्ती हुई थी. जिसका नॉर्मल डिलीवरी हुआ. फिर उसे डिलीवरी के अगले दिन अस्पताल से छुट्टी दे दिया गया, लेकिन जो कॉटन कपड़ा लगाया था उसे निकालना भूल गए. ऐसे में घर पहुंचते ही महिला के पेट में दर्द होना शुरू हो गया. महिला को तीन दिनों तक यूरीन नहीं हुआ और लगातार पेट में दर्द हो रहा था. ऐसे में परेशान होकर परिजन उसे प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराए. जहां जांच के बाद डॉक्टरों ने शरीर के एक अंग में फंसे कॉटन बाहर निकाला. तब जाकर महिला को यूरीन हुआ. मामले में मेडिकल कॉलेज प्रबंधन इससे इंकार कर रहा है.
गर्भवती महिला के साथ डॉक्टर की लापरवाही
जानकारी के अनुसार, बालमगोड़ा निवासी एक गर्भवती महिला को 9 जनवरी को मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती कराया था. भर्ती करने के बाद डॉक्टरों ने 10 जनवरी को नॉर्मल तरीके से डिलीवरी कराया. नार्मल डिलीवरी के बावजूद थोड़ा सर्जरी कर टांका लगाना पड़ा. जहां डॉक्टरों ने कॉटन, कपड़ा लगाया था. इस कपड़े को 24 घंटे बाद निकाला जाता है, मगर डॉक्टरों ने ऐसा नहीं किया. 11 जनवरी को महिला को अस्पताल से छुट्टी दे दिया गया. घर जाने के बाद महिला को यूरीन की समस्या होने लगी. 3-4 दिनों तक महिला दर्द से तड़प रही थी.
ऐसे में परेशान होकर 14 जनवरी को महिला को प्राइवेट अस्पताल लेकर पहुंचे. जहां जांच के बाद डॉक्टरों ने कॉटन नहीं निकालने की जानकारी दी. जिसके कारण यूरीन नहीं हो पा रहा था. डॉक्टरों ने माइनर सर्जरी कर काटन, कपड़े को बाहर निकाल कर साफ किया. इसके बाद महिला को दर्द से राहत मिला. उपचार के बाद डॉक्टरों ने बताया कि समय पर उसे बाहर नहीं निकाला जाता तो इंफेक्शन की समस्या हो सकती थी.
24 घंटे बाद निकालते हैं कॉटन
मामले में विशेषज्ञ डॉक्टरों से बात किया गया. उन्होंने बताया कि अगर कॉटर का इस्तेमाल किया जाता है तो उसे 24 घंटे के अंदर बाहर निकाला जाता है. जिससे की महिला को परेशानी न हो. इस मामले में ऐसा नहीं किया गया जिसके कारण महिला को यूरीन में समस्या हो गई थी. उन्होंने बताया कि सही समय पर अस्पताल नहीं पहुंचने पर महिला को बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता था.
स्टाफ से पूछताछ की जाएगी
एचओडी गायनिक डॉ. टीके साहू ने बताया कि डिलीवरी के बाद कॉटन डाला जाता है तो पेपर में लिखा जाता है. मरीज को इसकी जानकारी दी जाती है कि उसे निकलवा कर ही घर जाए. कागजात में कहीं इसका उल्लेख नहीं है. इस संबंध में स्टाफ से पूछताछ की जाएगी.