यूक्रेन
यूक्रेन से जारी रूस की जंग के बीच नाटो देशों ने बड़ा फैसला लिया है। नाटो देशों की सेनाएं दशकों का सबसे बड़ा सैन्य अभ्यास करने जा रही हैं। इसे रूस से निपटने की तैयारी के लिए एक शक्ति प्रदर्शन के तौर पर देखा जा रहा है। इस सैन्य अभ्यास में करीब 90 हजार सैनिक हिस्सा लेंगे और यह कई महीने तक चलेगा। नाटो के एक अधिकारी ने बताया कि यह सैन्याभ्यास रूस को चेतावनी के तौर पर है कि हम नाटो के किसी भी देश की सीमा की रक्षा के लिए तत्पर हैं और रूस उन पर बुरी नजर नहीं डाल सकता। यह अभ्यास ऐसे समय में हो रहा है, जब रूस और यूक्रेन के बीच चल रही जंग को दो साल पूरे होने वाले हैं।
इस युद्ध में नाटो देशों ने खुलकर हिस्सा नहीं लिया है, लेकिन यूक्रेन को अप्रत्यक्ष तौर पर हथियार एवं फंडिंग मुहैया कराई है। यही नहीं यूक्रेन की सेना को सैन्य ट्रेनिंग भी दी गई है। यहां तक कि फिनलैंड भी इसी जंग के डर से पिछले दिनों नाटो का हिस्सा बना है। यूक्रेन भी ऐसी मांग कर रहा है, जिस पर अब तक कोई फैसला नहीं हो सका है। इस जंग के मद्देनजर यूक्रेन के साथ सीमा साझा करने वाले फिनलैंड, पोलैंड और हंगरी जैसे देशों में अलर्ट की स्थिति है और यहां नाटो सैनिक तैनात हैं। कहा जा रहा है कि शीत युद्ध के बाद यह पहला मौका है, जब नाटो के देशों में इतनी सतर्कता बरती जा रही है और वे एक संभावित युद्ध के लिए तैयार हैं।
31 देशों के नाटो संगठन की ओर से यह शक्ति प्रदर्शन मायने रखता है। इसका संदेश यह होगा कि नाटो एकजुट है और हमारे संगठन के किसी भी देश पर आंच आई तो हम रूस से लोहा लेने के लिए तैयार हैं। दरअसल नाटो देशों को डर है कि यूक्रेन के साथ जंग का विस्तार हुआ तो वे भी चपेट में आ सकते हैं। अमेरिकी जनरल क्रिस्टोफर कैवोली ने इस अभ्यास को लेकर कहा कि हम यह दिखाना चाहते हैं कि अमेरिका, यूरोप और अटलांटिक के देश कैसे एकजुट हैं और रूस के खिलाफ पूरी तरह से तैयार हैं।
इस तैयारी का लेवल इससे भी समझा जा सकता है कि स्वीडन भी इसमें हिस्सा लेगा, जो अभी संगठन का हिस्सा भी नहीं है। स्वीडन नाटो में एंट्री के लिए आवेदन कर चुका है और जल्दी ही इसे लेकर फैसला हो जाएगा। ब्रिटिश डिफेंस मिनिस्टर ग्रैंट शैप्स ने कहा कि हमारी सरकार इस युद्धाभ्यास में 20 हजार सैनिकों को भेजेगी। इसके अलावा फाइटर जेट्स, सर्विलांस प्लेन, वॉरशिप और पनडुब्बियां भी भेजी जाएंगी। फरवरी से लेकर जून तक इन्हें पूर्वी यूरोप के देशों में तैनात किया जाएगा। यहां महीनों तक यह युद्धाभ्यास चलने वाला है।