वैसी मुस्लिम महिलाएं अपने विवाह विच्छेद को रजिस्टर कराने अदालतों के चक्कर ना काटें : केरल हाई कोर्ट

नई दिल्ली
केरल हाई कोर्ट ने अपने एक हालिया फैसले में कहा है कि वैसी मुस्लिम महिलाएं अपने विवाह विच्छेद (divorce) को रजिस्टर कराने अदालतों के चक्कर ना काटें जिनका अलगाव मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के तलाक पद्धति से हुआ है।  जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन  की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि जन्म, मृत्यु और विवाह रजिस्ट्रार को मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत हुए तलाक को रजिस्टर करने के लिए अदालती आदेश पर जोर देने की जरूरत नहीं है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस कुन्हिकृष्णन ने कहा कि यदि पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक सही है, तो मुस्लिम महिलाओं को तलाक दर्ज कराने के लिए अदालत भेजने की जरूरत नहीं है और संबंधित रजिस्ट्रार खुद तलाक दर्ज कर सकते हैं। हाई कोर्ट का यह  फैसला तब आया जब कोर्ट ने पाया कि केरल विवाह पंजीकरण (सामान्य) नियम, 2008 में एक अंतर देखा जा रहा है। वह अंतर यह था कि पर्सनल लॉ के तहत प्राप्त तलाक के पंजीकरण का प्रावधान उसमें नहीं है।

हाई कोर्ट ने कहा कि इससे केवल तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को ही नुकसान होगा, जबकि तलाकशुदा मुस्लिम पुरुषों को  कोई नुकसान नहीं होगा क्योंकि यदि कोई मुस्लिम पति अपने पर्सनल लॉ के अनुसार तलाक देता है, तो वह 2008 के नियमों के तहत  रजिस्टर में विवाह प्रविष्टि को हटाए बिना पुनर्विवाह कर सकता है,क्योंकि उनका पर्सनल लॉ कुछ स्थितियों में उसे एक से अधिक विवाह की अनुमति देता है। कोर्ट ने कहा कि यहां महिलाओं के साथ भेदभाव यह है कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला तब तक पुनर्विवाह नहीं कर सकतीं जब तक कि 2008 के नियमों के अनुसार सक्षम अदालत से संपर्क करके विवाह प्रविष्टि को हटवा नहीं लेती।

कोर्ट ने पूछा, "अगर कानून का पालन करने वाले मुस्लिम जोड़े ने नियम 2008 के अनुसार अपनी शादी का पंजीकरण कराया और बाद में पति ने तलाक कह दिया, तो क्या नियम 2008 के अनुसार उसका पंजीकरण कराना अकेले मुस्लिम महिलाओं के लिए बोझ नहीं होगा?" पीठ ने कहा कि तलाक को पंजीकृत करने की शक्ति विवाह को रिकॉर्ड करने की शक्ति में सहायता पहुंचाने के लिए है।  इसलिए, रजिस्ट्रारों को पर्सनल लॉ के तहत प्राप्त तलाक को रिकॉर्ड करने के लिए अदालत के आदेशों की प्रतीक्षा करने की जरूरत नहीं है।

कोर्ट ने टिप्पणी की कि विधायिका 2008 के नियमों की कमी को ठीक करे।  कोर्ट ने यह फैसला एक महिला की याचिका पर सुनाया है, जिसे 2008 के नियम के मुताबिक तलाक पंजीकरण कराने में असुविधा आ रही थी। महिला ने हाई कोर्ट से इस मामले में तलाक रजिस्टर कराने का आदेश देने की मांग की थी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *