‘द फ्रीलांसर’ मिली तो भावुक हो गई: मंजरी

मुंबई

इमरान खान और जेनेलिया डिसूजा की फिल्म ‘जाने तू…या जाने ना’ को रिलीज हुए 15 साल हो चुके हैं। फिल्म में एक्ट्रेस मंजरी फडनिस बतौर सेकंड लीड नजर आई थी। बॉक्स ऑफिस पर फिल्म काफी सक्सेसफुल रही हालांकि मंजरी की माने तो इस फिल्म की सफलता ने उनके करियर में कोई मदद नहीं की। हाल ही में मंजरी ने बताया कि जिस तरह के प्रोजेक्ट ऑफर होते थे वे बिलकुल संतोषजनक नहीं थे।  उन्होंने अपनी हाल ही में रिलीज हुई वेबसीरीज ‘द फ्रीलांसर’ पर भी रोशनी डाली। दरअसल, ‘जाने तू…या जाने ना’ के बाद मैं स्टोरियोटाइप हो गई थी, मुझे एक जैसे ही रोल ऑफर होते थे। फिल्म को बहुत अच्छा रिस्पांस मिला था, मैं उसमे सेकंड लीड रोल निभा रही थी। मैंने ये सोचकर फिल्म साइन की थी कि मैं एक अच्छे प्रोजेक्ट का हिस्सा बनूंगी। सोचा था कि क्या हुआ यदि मैं फिल्म में सेकंड लीड का रोल निभा रही हूं, मैं ये दिखाना चाहती थी की मैं किसी प्रोजेक्ट को लीड भी कर सकती हूं। लेकिन जैसा सोचा वैसा नहीं हुआ।

इस फिल्म के बाद, मुझे हर बार सेकंड लीड का ही रोल ऑफर हुआ करता था, जिससे मैं बिलकुल संतुष्ट नहीं थी। मैं सपोर्टिंग रोल भी वही करना चाहती थी जो इम्पैक्टफुल रहे, ऑडियंस पर छाप छोड़े। लेकिन, वैसे रोल भी नहीं मिलते थे। इसीलिए मैंने इस तरह के रोल को अपनाने से बेहतर इंतजार करने का फैसला लिया। ‘जाने तू जाने ना’ मेरे दिल के बहुत करीब है। यदि कभी मेकर्स ने इस फिल्म का पार्ट 2 बनाए और उसमें यदि मुझे अच्छा रोल ऑफर करें तो मैं जरूर हिस्सा बनना चाहूंगी। इमरान खान बहुत अच्छे को-स्टार थे। फिल्म के बाद मैं उनके संपर्क में रहना चाहती थी जिसकी मैंने कोशिश भी की थी हालांकि वो अचानक से गायब हो गए। उनके साथ की हर मेमोरी बहुत स्पेशल है। वो वाकई में बहुत अच्छे इंसान हैं और मुझे पूरा यकीन है कि वो जल्द ही कमबैक करेंगे। मैंने ‘किस किसको प्यार करूं’ और ‘ग्रैंड मस्ती’ जैसी फिल्में की। हालांकि इन फिल्मों ने भी मेरे करियर में कुछ ज्यादा बदलाव नहीं लाए लेकिन ये हिट जरुर रहीं। ऑडियंस को आज भी इन फिल्मों से मेरे डायलॉग याद हैं, ये अच्छी बात है। सीरीज ‘बरोट हाउस’ को मैं अपने करियर में टर्निंग पॉइंट मानती हूं।

मेरे इस प्रोजेक्ट को क्रिटिक और ऑडियंस दोनों से पॉजिटिव रिस्पांस मिले। इसके बाद से ओटीटी प्लेटफार्म पर मुझे अच्छे काम ऑफर होने शुरू हो गए। अब मैं पहले से काफी बेहतर काम कर रही हूं। इस बात से इंकार नहीं करूंगी कि अब तक के करियर में मैंने कई ब्रेकिंग पॉइंट्स का सामना किया। कई बार मुझे लगा कि सबकुछ छोड़कर अपने पेरेंट्स के पास, पुणे चली जाऊं। देखिए, मुंबई में रहना आसान नहीं है खासतौर पर हम जैसे लोगों के लिए जो अपनी शर्तों पर जीते हैं। मैं अपने काम को लेकर बहुत चूजी हूं। साल 2017 के बाद, तकरीबन दो साल तक मेरे पास कोई काम नहीं था। 2019 में मैंने अपने पिता को कॉल किया और कहा कि मुझे घर लौटना है, मेरी सेविंग्स खत्म हो रही थी। उस वक्त पापा ने मुझे सपोर्ट किया और कहा कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके, फील्ड बदल सकती हूं। हालांकि, मैंने फिर थोड़ा इंतजार करने का फैसला लिया। फिर मुझे 'बरोट हाउस' ऑफर हुई। यकीन मानिए जब-जब ऐसा ख्याल आता, अचानक से मेरे पास ऐसा प्रोजेक्ट ऑफर होता जिससे मेरी उम्मीदें बढ़ जाती। मैं कई सालों से नीरज पांडे सर के साथ काम करना चाहती थी। आखिरकार, जब मुझे ‘द फ्रीलांसर’ के लिए ऑडिशन का कॉल आया, तो काफी खुशी हुई। नीरज सर मेरा ऑडिशन ले रहे थे। आखिरकार, मुझे शॉर्टलिस्ट कर लिया गया। जब मैं फाइनल हुई, तो मैं बेहद भावुक हो गई थी। मेरा किरदार काफी मजबूत था। इस किरदार को मैंने काफी एन्जॉय किया।

 

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