साजा के जीत की गूंज दिल्ली तक सुनाई पड़ रही

रायपुर

वैसे तो प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस के कई सूरमा हार गए लेकिन साजा में कांग्रेस के कद्दावर नेता रविन्द्र चौबे जो कि अपनी परम्परागत सीट हार गए वह भी एक गैर राजनीतिक व्यक्ति ईश्वर साहू से इस जीत की गूंज छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली तक सुनाई पड़ रही। भाजपा के चाल में फंस गए चौबेजी और सहानुभूति की लहर असर कर गया। हालांकि मतदान के बाद कांग्रेस के लोगों को रूझान समझ आ गया था फिर भी वे कहते रहे जीतेंगे तो जरूर भले ही 5 हजार से और यह अनुमान उनके लिए फिट बैठ गया जब वे इतने ही मतों से चुनाव हार गए।

दरअसल बिरनपुर हत्याकांड मामले को भाजपा ने चुनावी रणनीति में अघोषित रूप से शामिल कर लिया और इसका असर साजा बेमेतरा व कवर्धा की तीन सीट खोकर कांग्रेस को चुकानी पड़ी है। कांग्रेस ने हल्के में ले लिया इस घटनाक्रम को शायद यही लगते रहा। ईश्वर साहू व उनके परिवार ने मतदाताओं के बीच जाकर सिर्फ इतना ही कहते रहे हमने अपना बेटा खोया है और नहीं चाहते किसी और के बेटे के साथ ऐसा हो। साजा में कांग्रेस की हार के पीछे के कुछ प्रमुख कारण जो वहां के स्थानीय लोग अब गिना रहे हैं-साहू और लोधी समाज के लोग पूरी तरह लामबंद हो गए कि इस बार नहीं तो कभी नहीं। बिरनपुर में जिस युवक की हत्या हुई थे उसके पिता ईश्वर साहू व उनकी माता के आंखों मे आंसू देखकर ग्रामीण मतदाताओं ने सहानुभूति उड़ेल दिया। अति उत्साही कांग्रेसियों की यह बात कि .. अरे वो छेरी चरवाहा ल कहां विधायक बनाहूं..? भाजपा ने जमकर प्रचारित किया। 

रही-सही कसर चुनाव प्रचार खत्म होने के अंतिम क्षण में हुई अमित शाह की आखिरी सभा जैसा कि वहां के लोग बताते हैं साजा व बेमेतरा को एक कर दिया था,भाजपा के कार्यकतार्ओं और मतदाताओं से उन्होने दो टूक कहा कि वे इन दोनों सीटों से जीत मांगते हैं,आगे की जिम्मेदारी उनकी रहेगी। एक और अंतिम कारण साजा की सीट को कांग्रेसी निश्चित जीत वाली सीट में गिनते रहे और अभी तक यह रहा भी है,अति आत्मविश्वास भी यहीं चूक कर गया। खैर..जनता का फैसला अंतिम अब ईश्वर साहू ने तो यहां इतिहास रच दिया। स्वस्थ व संस्कारित राजनीति तो यही कहती है कि हार को भी स्वीकारें और रचनात्मक भूमिका विपक्ष की निभायें।

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