सरगुजा
छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से बस्तर और सरगुजा संभाग (Bastar and Surguja division)की सीटों को बेहद अहम माना जाता है, क्योंकि कई बार ये ही सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सरगुजा संभाग की 14 सीटों पर वर्तमान में सूबे के डिप्टी सीएम बनाए गए और सरगुजा राजपरिवार के सदस्य टीएस सिंहदेव (T S Singhdev) का बड़ा प्रभाव रहता है. 2018 के चुनाव में पूरी 14 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थीं. लेकिन, इस बार सिंहदेव की कांग्रेस में लगातार हुई उपेक्षा और इसे लेकर उनके समर्थकों के बीच उपजी नाराजगी के बाद बदले समीकरण से कांग्रेस को यहां से तगड़ा झटका लगा है.
एक वक्त था जब 2018 में कांग्रेस की सरकार (Congress government)बनने की सुगबुगाहट शुरू हुई थी तब सरगुजा की जनता और सिंहदेव के समर्थकों के बीच 'सरगुजा सरकार' का नारा बेहद चर्चित हुआ था. मतलब साफ था कि कांग्रेस की सरकार बनेगी तो सीएम टीएस सिंहदेव बनेंगे. लेकिन,ऐसा नहीं हुआ. जब नतीजे आए तो दुर्ग संभाग समेत ओबीसी वर्ग को साधने के नजरिए से भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel)भारी पड़ गए.
फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब ये चर्चा बलवती हुई कि ढाई-ढाई साल के सीएम का फॉर्मूला तय हुआ है. यानी ढाई साल भूपेश बघेल सूबे के मुखिया रहेंगे और फिर अलगे ढाई साल टीएस सिंहदेव सीएम बनेंगे. ये भले ही आधिकारिक नहीं था लेकिन जब ढाई साल की अवधि पूरी हुई तो कांग्रेस दो धड़ों में बंटती नजर आई. सिंहदेव व उनके समर्थक और सीएम भूपेश अपने समर्थकों के साथ दिल्ली में नजर आ रहे थे. इन सबके बीच सिंहदेव के सरगुजा के समर्थकों की आस बंधती नजर आ रही थी,जो बाद में टूट गई. इस टीस को सरगुजा में कांग्रेस की परिणति का बड़ा कारण माना जा रहा है. तब सिंहदेव की सरकार में लगातार उपेक्षा की खबरें भी आती रहीं. इसका भी खासा प्रभाव माना जा रहा है.
विरोधी नेताओं ने किया पलीता
चुनावी समीकरण साधने के दौरान 2018 के चुनाव में कुछ ऐसे नेताओं को भी टिकट दिया गया था, जो सिंहदेव के समर्थक तो नहीं माने जाते, लेकिन स्थानीय स्तर पर उनकी पकड़ मजबूत है. इन नेताओं ने सीएम बघेल का खेमा थाम लिया. फिर मुखर होकर सिंहदेव के खिलाफ बयानबाजी भी करते रहे. रामानुजगंज विधायक बृहस्पति सिंह तो एक कदम आगे बढ़कर खुद की हत्या की साजिश रचने तक का आरोप लगा दिया. इन सबने राजनीतिक समीकरण को बदलने का रास्ता दिया.
टिकट कटने का असर
साढ़े चार सालों तक उपेक्षित रहे सिंहदेव का कद उस वक्त बढ़ गया, जब दिल्ली में हाईकमान की मीटिंग में सुलह की कोशिश शुरू की गई. एक ओर जहां उन्हें डिप्टी सीएम बनाया गया तो वहीं टिकट वितरण में भी सिंहदेव की ही चली. आखिरकार उन्होंने सरगुजा में अपने सभी विरोधियों का टिकट काट दिया. इसमें मनेंद्रगढ़ विधायक विनय जासवाल, बृहस्पत सिंह और सामरी विधायक चिंतामणि महाराज भी शामिल हैं. कहीं न कहीं उनकी नाराजगी,असहयोग का असर चुनावी नतीजे पर पड़ा है.
संभाग में चिंतामणि महाराज का प्रभाव
संत गहिरा गुरु के पुत्र चिंतामणि महाराज का सामरी से लेकर अन्य विधानसभा क्षेत्रों में बड़ी संख्या में समर्थक और शिष्य हैं. बीजेपी से जब वे कांग्रेस में आए थे तब उनके अधिकांश शिष्यों ने भी कांग्रेस के प्रति आस्था जताई. अब जब वे नाराज होकर फिर बीजेपी में चले गए हैं तो उनके साथ उनका वोट बैंक भी बीजेपी के पाले में चला गया.