नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट में 2024 में तीन मामलों में आने वाला फैसला देश की राजनीति के साथ-साथ अगामी लोकसभा चुनाव को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है। इनमें राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई ‘चुनावी बांड योजना’ की संवैधानिक वैधता से जुड़ा मामला सबसे महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की शक्तियों की समीक्षा और असम में नागरिकता से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की वैधता से जुड़ा मामला है।
चुनावी बांड योजना और नागरिकता कानून वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा है, जबकि ईडी की शक्तियों की समीक्षा को लेकर जनवरी में विस्तार से सुनवाई होगी। केंद्र सरकार द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए जनवरी, 2018 में शुरू की गई ‘चुनावी बांड योजना’ की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 2 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले पर सबकी निगाहें इसलिए भी टिकी हैं क्योंकि इसका फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव को सीधे तौर पर प्रभावित कर सकता है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ के समक्ष याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि राजनीतिक दलों के चंदा देने के लिए शुरू की गई गुमनामी चुनावी बांड योजना ‘लोकतंत्र को नष्ट’ कर देगी क्योंकि यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है।
दूसरी तरफ केंद्र सरकार ने योजना को सही बताते हुए कहा कि इसकी शुरुआत राजनीति/चुनाव में काले धन को खत्म करने के लिए शुरू की गई है। केंद्र सरकार ने संविधान पीठ को यह बताया कि लोगों को राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे का स्रोत जानने का हक नहीं है।
असम में नागरिकता से जुड़े धारा 6ए की वैधता
असम में नागरिकता से संबंधित मुद्दा हमेशा से चुनाव को प्रभावित करने का मुद्दा रहा है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने 12 दिसंबर को असम में ‘नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 17 याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। धारा 6ए असम समझौते के तहत आने वाले अप्रवासियों को भारतीय नागरिकता
देने से संबंधित है।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ के समक्ष ‘आल असम अहोम एसोसिएशन और अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से कहा गया कि धारा 6ए अपने आप में पूरी तरह से अनुचित है। पीठ को बताया गया कि इससे असम के स्थानीय लोगों के रोजगार सहित कई पहलुओं पर प्रभाव पड़ा।
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि धारा 6ए भारतीय संविधान के मूल ताने-बाने और प्रस्तावना में निहित धर्मनिरपेक्षता, बंधुत्व और भाईचारे के मूल्यों का उल्लंघन करती है। केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रखते हुए पीठ के समक्ष स्पष्ट किया कि धारा 6ए की संवैधानिक वैधता की जांच का नागरिकता अधिनियम में किसी अन्य संशोधन से कोई लेना-देना नहीं है।
ईडी की शक्तियों की समीक्षा
सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की विशेष पीठ प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की अथाह शक्तियों की समीक्षा कर रही है। इस मामले में जनवरी, 2024 में विस्तृत सुनवाई शुरू होगी। इस मामले में आने वाला नतीजा देश की राजनीति को काफी प्रभावित करेगा क्योंकि अभी यह आरोप लगाया जा रहा है कि ईडी का इस्तेमाल विपक्षी पार्टियों को दबाने के लिए किया जा रहा है।
सुप्रीम कोर्ट उन याचिकाओं पर विचार कर रही है, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तारी, धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती सहित ईडी की अन्य शक्तियों को चुनौती दी गई है। शीर्ष अदालत ने 24 नवंबर को इस मामले की सुनवाई 8 सप्ताह के लिए स्थगित करते हुए, जनवरी, 2024 में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया था। विशेष पीठ ने सुनवाई स्थगित करते हुए सरकार को मामले में दाखिल संशोधित याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।