बुजुर्ग विधवा को पेंशन दिलाने पर अड़े हाईकोर्ट जज, सरकारी वकील से कोर्टरूम में 5 मिनट तक तीखी भिड़ंत

नई दिल्ली
केरल हाई कोर्ट में 78 साल की एक बुजुर्ग महिला को विधवा पेंशन दिए जाने के मामले में जज और सरकारी वकील में तीखी नोकझोंक हुई।  मामले की सुनवाई कर रहे जस्टिस देवन रामचंद्रन को सरकारी वकील ने बताया कि राज्य सरकार अपनी वर्तमान वित्तीय स्थिति के कारण 78 वर्षीय विधवा मारियाकुट्टी की पेंशन जरूरतों को पूरा नहीं कर सकती है। केरल सरकार के वकील ने अदालत को यह भी बताया कि केंद्र सरकार इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन में अपने हिस्से का अंशदान जुलाई से ही नहीं कर रही है, इसलिए याचिकाकर्ता को पेंशन देने में दिक्कत है।

सरकारी वकील ने अपने तर्क में यह भी कहा कि पीड़ित विधवा की याचिका राजनीति से प्रेरित है। इस पर जज भड़क गए और फटकार लगाते हुए पूछा कि क्या एक बुजुर्ग और साधारण सी महिला जो मात्र 1600 रुपये के मासिक पेंशन के लिए अदालत से इंसाफ की गुहार लगा रही है, वह राज्य सरकार के खिलाफ राजनीतिक षडयंत्र रच सकती है। बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस रामचंद्रन ने कहा, "आप जो कह रहे हैं, उसकी जानकारी मेरे पास नहीं है और कृपया कर आप ऐसा ना कहें क्योंकि आपकी किसी भी बात का मुझे न्यायिक नोटिस लेना होगा। मुझे नहीं पता कि याचिकाकर्ता को बदनाम करके आपको क्या मिलता है। मैं आपका बयान दर्ज कर रहा हूं।"

इससे पहले की सुनवाई की तारीखों पर हाई कोर्ट केंद्र और राज्य, दोनों सरकार पर नाराजगी जता चुकी है और इस बात के लिए आलोचना कर चुकी है कि समय पर पेंशन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। जस्टिस रामचंद्रन ने यह भी कहा कि मारियाकुट्टी जैसी बुजुर्ग महिला नागरिक अदालत के लिए वीवीआईपी हैं। न्यायाधीश ने शुक्रवार को अपने आदेश की शुरुआत ही  सरकारी वकील की इस दलील को दर्ज कराते हुए की कि विधवा ने राहत के लिए किसी वास्तविक "इच्छा" के साथ उच्च न्यायालय का रुख नहीं किया है। जज अभी अपना आदेश लिखवा ही रहे थे कि सरकारी वकील फिर से बीच में कूद गए और पूछने लगे कि आखिर पीठ आखिर इस बात का उल्लेख अपने फैसले में क्यों कर रही है? सरकारी वकील ने इस पर प्रतिरोध जताया और कहा कि इससे मीडिया में नेगेटिव रिपोर्टिंग होगी।

इस पर जस्टिस रामचंद्रन फिर भड़क उठे और सरकारी वकील से कहा, 'तो कृपाकर आप अपनी दलील का स्पष्टीकरण पेश कीजिए। क्या मैंने बिना किसी सबूत के ऐसा कहा है?' इस पर सरकारी वकील ने सफाई दी, "मी लॉर्ड, आपने मेरे एक शब्द को उठा लिया और उसे ही फैसले का आधार बनाने लगे। यह मेरी समझ से बाहर है। यह एक साधारण सी रिट याचिका है, जिसमें वादी पेंशन और आर्थिक लाभ चाहती है। इसमें आपकी हर टिप्पणी और आक्षेप सरकार के खिलाफ जाएगा।"

जस्टिस रामचंद्रन सरकारी वकील के इस्तेमाल शब्द आक्षेप पर फिर भड़क गए और उन्होंने इस पर भी स्पष्टीकरण मांग लिया। पांच मिनट से भी ज्यादा देर तक जज और सरकारी वकील में तीखी नोकझोंक होती रही। इसके बाद जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि वह स्वयं उस बकाया राशि का भुगतान करने के लिए वैकल्पिक तरीके की व्यवस्था कर सकते है जिसकी विधवा हकदार है और एक रूढ़िवादी अनुमान के अनुसार लगभग 5,000 रुपये है। हालांकि, उन्होंने कहा कि ऐसा करने से ऐसे ही अन्य दावेदारों के साथ अन्याय होगा जो अदालत में आने का या तो जोखिम नहीं उठा सकते,या सक्षम नहीं हैं।

इस पर पीड़ित विधवा के वकील ने कहा कि उसे हक चाहिए, कोई दान नहीं। जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि वह महिला की गरिमा का सम्मान करते हैं। सुनवाई से आहत जस्टिस रामचंद्रन ने कहा कि उन्हें पता है कि याचिकाकर्ता पीड़ित है, इसलिए वह इस साल कोई क्रिसमस उत्सव नहीं मनाएंगे। न्यायमूर्ति रामचंद्रन ने न्यायाधीश की टिप्पणियों पर मीडिया रिपोर्टों का हवाला देकर की जा रही दलीलों पर भी अपनी आपत्ति दोहराई और दूसरे मामले की सुनवाई करनी शुरू कर दी।