विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर करीबी मुकाबला, BJP-कांग्रेस के साथ कैसे ‘खेल’ कर सकती है

भोपाल

मध्‍य प्रदेश की राजनीति में वैसे तो दो प्रमुख दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही लंबी पारी खेलते आ रहे हैं। यहां हमेशा कांग्रेस या बीजेपी में से ही किसी पार्टी की सरकार रही है। इस प्रदेश में इन दोनों पार्टियों के अलावा कोई भी पार्टी कभी इस स्तर पर नहीं उभरी कि अपनी सरकार बना सके या किसी सरकार में बहुत महत्वपूर भूमिका निभा सके। हालांकि पिछले कुछ सालों से ये समीकरण बदलते नजर आ रहे हैं।  

बीते मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगभग 30 सीटों पर जीत का अंतर 3,000 वोटों से कम था। इनमें से 15 सीटें कांग्रेस ने और 14 सीटें बीजेपी ने जीतीं, जबकि बसपा ने 1 सीट जीती। वहीं, साल 2013 में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की थी। लेकिन इसमें 33 ऐसी सीटें थीं उम्मीदवार 3,000 से कम वोटों के अंतर से विजेता बने। इस चुनाव में 33 में से बीजेपी ने 18 सीटें, कांग्रेस ने 12, बीएसपी ने 2 और एक निर्दलीय ने 1 सीट जीती थी। ऐसे में इस बात से झुठलाया नहीं जा सकता है कि राज्य चुनाव में छोटी पार्टियों की भूमिका अहम हो सकती है। इनमें बसपा शामिल है, जिसने क्षेत्रीय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के साथ गठबंधन किया है। इसके आलवा समाजवादी पार्टी, जो इंडिया गठबंधन में है वह कांग्रेस के साथ साझेदारी करने की योजना विफल होने के बाद मध्य प्रदेश में 30 सीटों पर चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है।

साल 2013 और 2018 में जिन 7 सीटों पर एक ही पार्टी जीती थी, उनमें से 2018 में कांग्रेस ने 4 और बीजेपी ने 3 सीटें जीतीं। 2018 में कई निर्वाचन क्षेत्रों में जो कम अंतर से जीते गए थे, क्षेत्रीय दलों को जीतने वाले उम्मीदवार की जीत के अंतर से अधिक वोट मिले। 17 नवंबर को होने वाले चुनाव में सपा ने अब तक 9 सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।  इनमें से 3 पर 2018 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस ने भी उन 9 सीटों में से 5 पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, जिन पर सपा ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं।

2018 में इन आठ विधानसभा सीटों पर जीत का अंतर छोटी पार्टियों को मिले वोटों से कम था।

विजयपुर: बीजेपी ने कांग्रेस को 2840 वोटों से हराया। बसपा को 35,628 वोट मिले और वह तीसरे स्थान पर रही।

ग्वालियर ग्रामीण: बीजेपी जीती, बसपा को 1517 वोटों से हराया। मुकाबले में बहुजन संघर्ष दल नामक पार्टी को 7,698 वोट मिले। जबकि आम आदमी पार्टी को 2,689 वोट मिले।

ग्वालियर दक्षिण: बीजेपी से कांग्रेस महज 121 वोटों से जीती। निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रहे बीजेपी के एक बागी को 30,745 वोट मिले, जबकि बसपा उम्मीदवार को भी 3,098 वोट मिले। आप को 646 और नोटा को 1,550 वोट मिले।

बीना (एससी-आरक्षित): बीजेपी ने कांग्रेस को 460 वोटों से हराया। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (ए) को यहां 1,563 वोट मिले।

मैहर: बीजेपी ने कांग्रेस को 2984 वोटों से हराया। जीजीपी को यहां 33,397 वोट मिले, जबकि एसपी को 11,202 वोट मिले।

टिमरनी (एसटी-आरक्षित): बीजेपी ने कांग्रेस को 2,213 वोटों से हराया। यहां फिर से जीजीपी को कांग्रेस को नुकसान पहुंचाते हुए देखा गया क्योंकि उसे 5,722 वोट मिले।

देवतालाब: बीजेपी ने बसपा को 1080 वोटों से हराया। यहां माना जा रहा है कि सपा को 2213 वोट मिलने से बसपा को नुकसान हुआ है।

राजपुर (एसटी-आरक्षित): कांग्रेस ने बीजेपी के खिलाफ 932 वोटों के अंतर से जीत हासिल की। यहां सीपीआई को 2,411 और आप को 1,510 वोट मिले।

आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही राष्ट्रीय दलों की नजर छोटे दलों और संगठनों पर टिकी हुई हैं। राज्य की राजनीति में यह ध्यान देने वाली बात है कि यहां पर भी कई क्षेत्रीय दल मजबूत स्थिति में हैं और अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग दलों का अपना प्रभाव है। राज्य में क्षेत्रीय दलों में कहीं पर समाजवादी पार्टी (एसपी) तो कहीं पर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) तो कहीं पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी और कहीं पर जयस यानी जय आदिवासी युवा शक्ति संगठन जैसे संगठनों का खासा प्रभाव माना जाता है। 

जयस के समर्थन से कांग्रेस को मिली थी जीत
साल 2018 के चुनाव परिणाम पर नजर डालें तो इन क्षेत्रीय दलों को जोरदार कामयाबी मिली थी। पांच साल पहले राज्य में हुए चुनाव में चार निर्दलीय उम्मीदवारों के अलावा बसपा के दो, सपा के एक उम्मीदवार विजयी रहे थे। यह प्रदर्शन राष्ट्रीय दलों को चौंकाने के लिए पर्याप्त था क्योंकि इन क्षेत्रीय दलों का यह अब तक का शानदार प्रदर्शन रहा था। सीट के लिहाज ज्यादा जीत इन्हें नहीं मिली लेकिन ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में बसपा ने बढ़िया प्रदर्शन किया था और वह कई सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी। अब 5 साल बाद ये छोटे राजनीतिक दल आपस में एकजुट होने की तैयारी में जुटे हैं, ये कोशिश बीजेपी और कांग्रेस को टेंशन में डालने वाली है क्योंकि हर क्षेत्र में उनको चुनौती देने के लिए अलग-अलग ताकत वाली कई क्षेत्रीय पार्टियां हैं। पिछले चुनाव में जयस ने कांग्रेस का समर्थन किया था और उसका फायदा भी मिला भी। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस के खाते में 30 सीटें चली गईं। जबकि बीजेपी को 16 सीटें ही मिलीं। अब जयस बीआरएस के साथ करार कर लिया है। ऐसे में कई सीटों पर मुकाबला द्विपक्षीय की जगह त्रिकोणीय या चतुष्कोणीय हो सकता है।