अंधविश्वास से मुठभेड़

जब कैलाश जीत सकता है जंग तो आप क्यों नहीं
• डॉ दिनेश मिश्र

15 जनवरी 2021 की दोपहर मैं अपनेअस्पताल में मरीज देख रहा था तब मुझे अस्पताल के कर्मचारी ने मुझे सूचना दी कि उरला से कुछ ग्रामीण आये है और मिलना चाहते हैं . अंधविश्वास निर्मूलन अभियान के अंतर्गत मेरा अक्सर ग्रामीण अंचल में जाना होता है और गाँवों से लोग मिलने आते हैं,और मामलों की जानकारी भी देते है और तकलीफें भी बताते हैं .और हम इनकी समस्याओं के निराकरण का प्रयास करते हैं, मैंने उन्हें अलग से बैठाने को कहा .कुछ देर में जब मैं उनसे मिलने गया तो देखा वह उरला बस्ती में रहने वाला परिवार ,जिसका मुखिया कैलाश साहू ,अपनी पत्नी मीना ,बेटी ज्योति के साथ 20 साल बाद मुझसे मिलने आया था और मेरे लिए बहुत सारी सब्जियां लाया था . मैंने उससे उसकी तबियत के हाल चाल पूछे तब बताया कि वह बिल्कुल ठीक है ,आज से 20 वर्ष पूर्व कैलाश गम्भीर रूप से बीमार हो गया था,और परिवार अंधविश्वास में फंस कर बैगा ,गुनिया के जाल में फंस गया था .
यह 3 जुलाई 2000 की बात है , मुझे ज्ञात हुआ कि राजधानी से सटे ग्राम उरला में एक कैलाश साहू नामक एक व्यक्ति किसी अज्ञात बीमारी का शिकार है तथा वह चलने फिरने में असमर्थ हो गया है , उसके शरीर का निचला हिस्सा लगभग निष्क्रिय हो गया हैं, तथा उसकी इस बीमारी का कारण बैगा किसी का जादू टोना,तो कोई टोनही का प्रकोप बता रहा है . जिसकी झाड़-फूंक करने के नाम पर बैगाओं द्वारा किये जा रहे झाड़ फूंक में ही उसकी जमा पूंजी खर्च हो चुकी है ,बल्कि उसकी पत्नी के जेवर भी बिक चुके हैं. यह परिवार जो सब्जी बेचकर गुजारा करता था, पिछले कुछ महीने से हुई इस तकलीफ से पूरे परिवार का जीवन अस्त व्यस्त हो गया है वही इस दंपत्ति के चारों छोटे बच्चों का पालन पोषण,पढ़ाई लिखाई का इंतजाम भी संकट मे हो गया है.
यह जानकारी मिलने पर जब हम उरला पहुंचे तब देखा कि वह युवक कैलाश दोनों पैरों का मूवमेंट करने में आप पूरी तरह से अक्षम है ,घिसट घिसट कर चल रहा है, मैंने उसके परिजनों से चर्चा की तथा उसे डॉक्टरी इलाज के लिए प्रेरित किया और समझाया कि, अंधविश्वास में ना पड़े , सही इलाज होने से उसका जीवन पुनः पहले की तरह ठीक हो जाएगा और वापस वह अपना काम कर सकता है,और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभा सकता है , काफी देर तक समझाने बुझाने के बाद उस परिवार को यह बात समझ मेंआयी, कि वास्तव में उनकी जो कमजोरी है, वह शारीरिक बीमारी के कारण, है उसका किसी भी जादू टोने ,तथाकथित तंत्र मंत्र से कोई ताल्लुक नहीं है और इस बीमारी का इलाज अस्पताल में संभव है,पर शहर आकर इलाज कराने के नाम पर वे असमंजस में थे. हमारे कुछ दिनों तक समझाने बुझाने के बाद कैलाश और उसकी पत्नी गांव से बाहर आकर इलाज कराने के लिए तैयार हुए ,कैलाश को उसके परिजनों की मदद से अस्पताल लाया गया,कैलाश की जांच हुई जिसमें पता चला कि उसके रीढ़ की हड्डी में टी बी है जिसे पॉट्स स्पाइन कहा जाता है और जिसके कारण उसके नस में दबाव उत्पन्न होने से उसके शरीर का निचला हिस्सा काम नहीं कर पा रहा है और वह चलने फिरने में असमर्थ हो गया, फिर हमने विशेषज्ञों से चर्चा की तथा उसके उपचार के लिए परामर्श की जांच से पता चला कि कि इस स्थिति में उसका ऑपरेशन करके उसे लाभ हो सकता है, कैलाश और उसके परिजनों को समझाया गया कि इस बीमारी का इलाज ऑपरेशन है हम उसका ईलाज निशुल्क करवाएंगे,उसे किसी बात के लिए चिंता करने की आवश्यकता नहीं है , हमने फिर से चर्चा करके आवश्यक व्यवस्थाएं करवाई, यह सुनिश्चित करते रहे कि उसका जल्द से जल्द ऑपरेशन हो जाए लेकिन किसी किसी कारणों से उसके ऑपरेशन की तिथि में भी विलंब होता रहा जिससे उस परिवार और उसके परिजनों का हौसला और विश्वास कम होता रहा लेकिन हम बराबर उससे बातचीत करते चिकित्सकों से चर्चा,उन्हें समझाते बुझाते मानसिक रूप से तैयार करते रहे और उसके लिए आवश्यक दवाइयां, ब्लड का इंतजाम किया गया उसका ऑपरेशन हुआ , डीकम्प्रेशन किया गया , जिससे उसकी रीढ़ की हड्डी की संक्रमण,सूजन कम हुई, स्पाइन की नस पर पड़ने वाला दबाव कम हुआ. ऑपरेशन के 40 दिनों के बाद अस्पताल से छुट्टी मिल पाई ,उसके बाद कुछ दिनों तक उसकी शारीरिक स्थिति में अधिक परिवर्तन नहीं आ पाया था जिससे उक्त परिवार निराश होने लगा था,और वे मुझसे बार बार पूछते थे कि कैलाश कब तक चल पायेगा, लेकिन उन्हें फिजियो थेरेपी तथा एक्सरसाइज के लिए प्रेरित किया गया और उसे लगातार करने कहा कि इसे करना जरूरी है ,इससे धीरे-धीरे उसकी नसों में फिर से ताकत आने लगी और कुछ महीनों के बाद कैलाश वापस धीरे-धीरे चलने, उठने, बैठने लायक होने लगा बीच-बीच में स्थानीय लोगों से मुलाकात होने पर मैं उसके हाल चाल लेते रहा ,एक दो बार जाना भी हुआ और उससे मुलाकात भी हुई उसकी शारीरिक स्थिति सुधरने लगी थी, कुछ महीनों के बाद वह,साइकल चला कर बाजार जाने लगा.
हाल में ही जब कैलाश, अपनी पत्नी मीना के साथ अपनी बेटी ज्योति से मुझे मिलने आया, तब बताया उसके दो बच्चों की शादी भी हो चुकी है, उसने दोपहिया वाहन भी खरीद लिया है स्वयं गाड़ी चला कर कुम्हारी बाजार जाता है और उरला में लाकर सब्जी बेचता है. और आत्मनिर्भर हो जीवन यापन करता है..
ग्रामीण अंचल में अंधविश्वास के खिलाफ यह हमारा एक प्रमुख मामला था क्योंकि इस से उरला,अछोटी और आसपास के ग्रामीण अंचल में कैलाश के वापस ठीक होने से समाज में एक सार्थक सन्देश गया और हमारे कार्यों को गति मिली.और अंधविश्वास के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना के अभियान को संबल मिला.था जिससे ग्रामीण अंचल में हमारे अभियान के प्रति विश्वास बढ़ा.
(डॉ. दिनेश मिश्र
अध्यक्ष ,अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति)
Dr.dineshmishra@gmail.com

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