नई दिल्ली। राज्यसभा ने मंगलवार को इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता संशोधन विधेयक 2021 को मंजूरी दे दी, जो इससे संबंधित अप्रैल महीने में जारी किए गए अध्यादेश की जगह लेगा। पिछले सप्ताह बुधवार को लोकसभा ने यह विधेयक पास कर दिया था। विधेयक को चर्चा एवं पारित होने के लिये रखते हुए कॉरपोरेट कार्य राज्य मंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता विधेयक लागू हुए पांच साल पूरे हो चुके हैं। इन पांच वर्षो में देश की कारोबारी सुगमता की स्थिति में प्रगति हुई है। मंत्री ने संसद में कहा कि कारोबारी सुगमता में भारत की रैकिंग आज बेहतर होकर 52वीं हो गई है। उन्होंने बताया कि कोविड के कारण सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र पर कुछ दिक्कतें आईं, जिससे इस संशोधन की जरूरत महसूस हुई।
क्या है प्री-पैक इन्सॉल्वेंसी रिजाल्यूशन प्रोसेस
इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता संशोधन अध्यादेश, 2021, इस साल चार अप्रैल 2021 से प्रभावी हो गया था। इसके तहत छोटे और मझोले इकाई के तहत आने वाले कर्जदार कारोबारियों को पहले से तैयार व्यवस्था (प्री पैकेज्ड) के तहत दिवाला निपटान प्रक्रिया की सुविधा मिल गई है। इसके तहत अधिकृत प्रतिनिधि की पहचान और चयन, सार्वजनिक घोषणा और संबंधित पक्ष के दावे, मसौदे की जानकारी, कर्जदाता और कर्जदाता समिति की बैठक करने, विवाद निपटान योजना का आमंत्रण, मूल विवाद निपटान और सबसे अच्छे विवाद निपटान के बीच प्रतिस्पर्धा तथा कॉरपोरेट कर्जदार के साथ विवाद निपटान पेशेवरों के साथ प्रबंधन जैसी सुविधाएं मुहैया करायी जाती हैं।
कोविड महामारी का असर कम करने के लिए उठाए कई कदम
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि कोविड महामारी ने भारत सहित सम्पूर्ण विश्व में कारोबार, वित्तीय बाजार एवं अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया है। सरकार ने महामारी के कारण उत्पन्न संकट को कम करने के लिये अनेक उपाए किये हैं जिसमें अन्य बातों के साथ निगम दिवाला प्रक्रिया प्रारंभ करने के लिये व्यक्तिक्रम की न्यूनतम रकम एक करोड़ रूपये से बढ़ाना शामिल है। इसमें 25 मार्च 2020 से 24 मार्च 2021 तक एक वर्ष की अवधि के दौरान निगम दिवाला प्रक्रिया आरंभ करने के लिये आवेदन फाइल का निलंबन शामिल है।
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग हैं अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी
इसमें कहा गया है कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम क्षेत्र हमारे सकल घरेलू उत्पाद में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। इसलिये यह जरूरी समझा गया कि त्वरित एवं लागत प्रभावी दिवाला प्रक्रिया के लिये संहिता के अधीन कुशल एवं वैकल्पिक ढांचा प्रदान करने पर तुरंत ध्यान दिया जाए। इन्सॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता के तहत सभी प्रस्तावों की योजनाएं राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण के तहत मंजूर होना जरूरी है।