नई दिल्ली। अगर इरादे पक्के हों तो किसी भी मंजिल तक पहुंचा जा सकता है।इस बात को सच साबित कर दिखाया है अजीत कुमार यादव ने।अजीत देश के दूसरे दृष्टिहीन आईएएस अफसर हैं. उनकी लड़ाई केवल अपनी शारीरिक अक्षमता से नहीं थीं, बल्कि उनकी लड़ाई थी सरकारी सिस्टम से।जी हां, अजीत ने देश की सबसे मुश्किल परीक्षा में शुमार संघ लोक सेवा आयोग की ओर से आयोजित होने वाली परीक्षा में 208वीं रैंक हासिल की थी लेकिन फिर भी उन्हें सिविल सेवा में कोई पद न देकर भारतीय रेलवे में बतौर अधिकारी पद की पेशकश की गई अजीत को अपनी अक्षमता की वजह से मिलने वाला ये पद मंजूर नहीं था।इसलिए उन्होंने इस पद को स्वीकार करने से मना कर दिया था।साथ ही इस भेदभाव के खिलाफ जाकर उन्होंने लड़ाई लड़ी।आखिरकार साल 2010 में उन्हें सफलता मिली और उन्हें IAS का पद ऑफर किया गया ।अजीत ने एक इंटरव्यू में कहा कि साल 2005 में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने पीएम मनमोहन सिंह को यह कहते हुए सुना कि IAS के दरवाजे दृष्टिहीन नागरिकों के लिए भी खोले जाने चाहिए।बस इस पल के बाद ही मुझे एहसास हुआ कि मुझे क्या करना है।यहां से मैंने सिविल सर्विसेज में जाने की ठानी और आज यह मुकाम हासिल कर लिया है।