काशी विश्वनाथ धाम को ज्ञानवापी मस्जिद ने दी जमीन…

बदले में मंदिर ने भी मुस्लिम समाज को दी जमीन
वाराणसी।
यूपी के काशी विश्वनाथ धाम को भव्य बनाने में मुस्लिम समाज ने भी अपना योगदान दिया है। ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की ओर से मस्जिद से सटी 17 सौ स्क्वायर फीट जमीन को धाम के निर्माण के लिए लिखा-पढ़ी में मंदिर के पक्ष में दे दिया है। इसके बदले में मंदिर प्रशासन ने मुस्लिम समाज को एक हजार स्क्वायर फीट जमीन दी है। शुक्रवार को मिली जमीन पर स्थापित जिला प्रशासन के कंट्रोल रूम के ध्वस्तीकरण का काम भी शुरू हो गया।
काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन और ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की ओर से बातचीत के दौरान जमीन हस्तांतरण पर सहमति बनी थी। सावन व बकरीद से पहले ही जमीन हस्तांतरण की प्रक्रिया को मूर्त रूप देकर काम शुरू हो गया है। कोर्ट की सहमति के आधार पर हुए इस समझौते को बेहद अहम माना जा रहा है। इस जमीन पर फिलहाल जिला प्रशासन का कंट्रोल रूम स्थापित था। इसके साथ ही बाबा दरबार में 17 सौ वर्गफीट का और इजाफा हो गया है।
ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की ओर से मंदिर प्रशासन को जमीन का 17 सौ वर्ग फीट हिस्सा काशी विश्वनाथ धाम को सौंपने के बाद मंदिर पक्ष द्वारा बांसफाटक के पास इसके बदले एक हजार स्क्वायर फीट जमीन दी गई है। माना जा रहा है कि जमीन के बदले जमीन देने का मामला होने से इसे कॉरिडोर के लिए जमीन खरीद का मामला नहीं माना जाएगा। अब इसका प्रयोग काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के लिए किया जाएगा।
00 निर्माण में हो रही थी परेशानी
काशी विश्वनाथ धाम परिसर में 17 सौ स्क्वायर फीट जमीन का यह हिस्सा निर्माण कार्य को भव्य स्वरूप देने में रोड़ा बना था। इस जमीन को लेकर कई बार आपस में दोनों पक्ष में बात हुई थी। आर्टिकल 31 के तहत एक्सचेंज आफ प्रापर्टी के तहत जारी दस्तावेजों में ई स्टांप के जरिए इस संपत्ति का हस्तांतरण किया गया है।
इसमें काशी विश्वनाथ मंदिर प्रशासन और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद की ओर से नौ लाख 29 हजार रुपये की स्टांप ड्यूटी चुकाकर संपत्ति का हस्तांतरण किया गया है। जमीन की रिपोर्ट के अनुसार जमीनों का हस्तांतरण आदि विश्वेश्वर और ज्ञानवापी मस्जिद पक्ष की ओर से जमीनों की अदला-बदली के तौर पर की गई है।
मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल ने बताया कि मंदिर प्रशासन को 17 सौ वर्ग फीट जमीन मिली है। इससे धाम के क्षेत्र में जमीन का इजाफा भी हो गया है। इसके लिए पहले से ही सहमति बन गई थी। औपचारिकता पूरी करने के बाद जमीन मंदिर प्रशासन के नाम हो गई है और बदले में बांसफाटक के पास जमीन दी गई है।

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