रायपुर । छत्तीसगढ़ बनने के बाद आदिवासी पहचान के साथ पहले मुख्यमंत्री बने अजीत प्रमोद कुमार जोगी के परिवार की जाति पर सरकार का फैसला सामने आ चुका है। स्व. जोगी जीवन भर जिस विवादों से घिरे रहे वह विवाद भी अब संभवतः थम जाए, क्योँकि उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने लंबी जांच और सुनवाई के बाद अजीत जाेगी की पुत्रवधु ऋचा जोगी का जाति प्रमाणपत्र निरस्त करने के एसडीएम के फैसले को सही ठहरा दिया है। आदिवासी विकास विभाग के सचिव डीडी सिंह की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने ऋचा जोगी के उस दावे को खारिज कर दिया, जिसके मुताबिक उन्होंने अपने पूर्वजों को गोंड जनजाति का बताया था। समिति ने 16 पृष्ठ के फैसले में छानबीन समिति ने ऋचा जोगी का दावा खारिज करने के लिए विजिलेंस सेल की रिपोर्ट, ऋचा जोगी की ओर से दिए गए भूमि और शैक्षणिक दस्तावेज और उनके पुरखों के गांव के लोगों के बयानों को आधार बनाया है।
छानबीन समिति का निष्कर्ष है, ऋचा जोगी अपने पुरखों के गाेंड जनजाति का होने का दावा प्रमाणित नहीं कर पाईं।
ऐसे में 27 जुलाई 2020 को मुंगेली से जारी उनका जाति प्रमाणपत्र निरस्त किया जाता है। छानबीन समिति के उप पुलिस अधीक्षक को उनका जाति प्रमाणपत्र जब्त करने को भी अधिकृत किया गया है। उच्च स्तरीय जाति प्रमाणपत्र छानबीन समिति इससे पहले ऋचा जोगी के ससुर और पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी का भी प्रमाणपत्र खारिज कर चुकी है।
00 क्या है जोगी परिवार की जाति :
छानबीन समिति ने अपने फैसले में जिन तथ्यों का उल्लेख किया है, उसमें ऋचा जोगी के पुरखों की जाति की पूरी कहानी धर्मांतरण की परतों में उलझ कर रह गई दिखती है। जाति प्रमाणपत्र के समर्थन में ऋचा जोगी ने अपने पुरखों को मुंगेली जिले के पेण्ड्रीडीह गांव का निवासी बताया था। जांच में सामने आया कि उनके पूर्वज वर्णवासी साधू, निवासी विश्रामपुर जिला बलौदा बाजार ने यहां 1940 में जमीन खरीदी थी।
बलौदा बाजार के इंगलिश मिडिल स्कूल में उनके पूर्वज का नाम दर्ज है, लेकिन जाति में क्रिश्चियन लिखा हुआ है। खुद ऋचा जोगी के स्कूली दस्तावेजों में जाति कॉलम में क्रिश्चियन दर्ज है। भूमि क्रय-विक्रय के 12 दस्तावेजों में खुद ऋचा जोगी और उनके पूर्वजों ने खुद को ईसाई (जन्म से गैर आदिवासी) बताया है।