नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में विधानसभा चुनावों से पहले नए चुनावी बांड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया है।इस फैसले के बाद अब इस पर रोक नहीं रहेगी। इससे पहले बीते बुधवार को शीर्ष कोर्ट में इस मामले की सुनवाई हुई और फैसला को सुरक्षित रख लिया गया था। दरअसल, एडीआर की ओर से दाखिल याचिका पर बुधवार को वकील प्रशांत भूषण ने कोर्ट में कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड सत्ताधारी दल को चंदे के नाम पर रिश्वत देकर अपना काम कराने का जरिया बन गया है। वहीं, सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग (ईसी) ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि वह चुनावी बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक पार्टीयों में फंडिंग की मौजूदा प्रणाली का समर्थन करता है, लेकिन इस प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना चाहेगा।
00 सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के चुनावी बॉन्ड योजना पर केंद्र से मांगा था जवाब
आयोग ने कहा कि बॉन्ड पर रोक लगाना हमें बेहिसाब कैश ट्रांसफर वाले दौर में ले जाएगा, जिसके चलते और नुकसान होंगे। बता दें 20 जनवरी, 2020 को शीर्ष अदालत ने 2018 के चुनावी बॉन्ड योजना पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया था और इसे लेकर केंद्र और चुनाव आयोग से जवाब मांगा था।
00 चुनावी बॉन्ड का मकसद काले धन की व्यवस्था पर रोक लगाना है
इस पर सीजेआई ने कहा था, यदि आपकी बात सही है तो हमें पूरे कानून को ही रद्द करना पड़ेगा। यह काम अंतरिम आदेश के जरिए कैसे हो सकता है? इस पर भूषण ने कहा कि वह अगले चरण में चुनावी बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश की मांग कर रहे हैं। वहीं, केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि चुनाव आयोग ने बॉन्ड के बिक्री की इजाजत दी है। चुनावी बॉन्ड का मकसद काले धन की व्यवस्था पर रोक लगाना है, क्योंकि इसमें बैंकिंग चैनल का इस्तेमाल होता है। इस पर भूषण ने कहा कि चुनावी बॉन्ड खरीदने वाला व्यक्ति कैश के जरिये भी इसे खरीद सकता है।