नई दिल्ली/ रायपुर। आदिवासियों के तीव्र विरोध के बाद आखिरकार केंद्र सरकार ने वन अधिनियम में संशोधन का मसौदा वापस लेने का निर्णय लिया है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने घोषणा की कि सरकार वन अधिनियम 1927 में संशोधन से जुड़ा मसौदा वापस ले रही है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि केंद्र सरकार आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है। उन्होंने सफाई देते हुए कहा कि इस मसौदे को केंद्र सरकार ने आधिकारिक तौर पर तैयार नहीं किया था।
उल्लेखनीय है कि इस मसौदे को लेकर देशभर के आदिवासी लामबंद हो रहे थे। छत्तीसगढ़ में भी राजनांदगांव जिले के मोहला क्षेत्र के आदिवासी रायपुर तक पदयात्रा पर निकल चुके थे। बस्तर क्षेत्र के आदिवासी भी प्रस्तावित वन कानून को लेकर प्रदर्शन की तैयारी में थे। कमोवेश यही स्थिति देश के हर आदिवासी क्षेत्र की थी। आखिरकार चौतरफा विरोध के चलते केंद्र सरकार ने इस मसौदे को वापस लेते हुए सफाई दिया है कि सरकार पूरी तरह आदिवासियों के साथ है।
गौरतलब है है कि वन भूमि पर आदिवासी परिवारों के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सन 2006 में वन अधिकार कानून पारित किया था। इस कानून के तहत आदिवासी परिवारों को वन भूमि पर कई महत्वपूर्ण अधिकार दिए गए थे, लेकिन केंद्र सरकार ने वन भूमि में आदिवासियों के अधिकारों को खत्म करने के लिए राज्य सरकार को एक प्रस्ताव दिया है, जिसका आदिवासी परिवार विरोध कर रहे थे। आदिवासियों की मांग थी कि वन अधिकार कानून में जो संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को प्रस्ताव दिए हैं, उसे निरस्त किया जाए।