बिलासपुर। शिक्षक भर्ती में विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग के अभ्यर्थियों को बीएड-डीएड नहीं होने के कारण अपात्र कर दिया गया। इस मामले में दायर याचिका की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने विशेष पिछड़ी जनजाति वर्ग को छूट देने के प्रविधान के आधार पर याचिकाकर्ता को अपात्र करने के आदेश को निरस्त कर दिया है।
बस्तर संभाग में अंग्रेजी शिक्षक की नियुक्ति के लिए 10 जनवरी 2020 में विज्ञापन जारी किया गया था। इसके लिए मोहन सिंह ने भी आवेदन किया था। लेकिन उनके आवेदन पत्र को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि उनके पास बीएड-डीएड संबंधी योग्यता नहीं है। इस पर मोहन सिंह ने अपने अधिवक्ता अजय श्रीवास्तव के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। इसमें बताया गया कि राज्य शासन की अधिसूचना में स्पष्ट है कि अधिसूचित क्षेत्र की विशेष पिछड़ी जनजाति को बीएड-डीएड व टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक नहीं है। उन्हें नियुक्ति देने के पांच साल के भीतर बीएड-डीएड प्रशिक्षण प्राप्त करने की छूट दी गई है।
याचिकाकर्ता अबूझमाड़िया जनजाति से है जो अधिसूचित विशेष पिछड़ी जनजाति में आते हैं। उनका निवास मुरनार(ओरछा) जिला नारायणपुर है जो कि अनुसूचित क्षेत्र में आता है। इस आधार पर याचिकाकर्ता को बीएड-डीएड नहीं करने पर आवेदन पत्र निरस्त नहीं किया जा सकता। बल्कि, उन्हें इससे छूट देकर नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल करना है। इस मामले की सुनवाई जस्टिस पी सैम कोशी की एकलपीठ में हुई। कोर्ट ने सुनवाई के बाद पाया कि याचिकाकर्ता अनुसूचित क्षेत्र का निवासी है एवं विशेष पिछड़ी जनजाति अबूझमाड़िया में आता है। उन्हें राज्य शासन ने नियुक्ति प्रक्रिया में बीएड-डीएड की अनिवार्यता से छूट दी है। लिहाजा कोर्ट ने उन्हें अपात्र करने के आदेश निरस्त कर दिया है।
45 दिनों में नियुक्ति करने का आदेश
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में राज्य शासन को निर्देशित किया है कि अन्य योग्यता पूरी करने पर याचिकाकर्ता को भी अन्य योग्य अभ्यर्थियों की तरह 45 दिनों के भीतर नियुक्ति देने की कार्रवाई की जाए।