कोलकाता। केंद्र की मोदी सरकार के मुखर विरोधी अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे पूर्व भाजप नेता यशवंत सिन्हा फिर से सक्रिय राजनीति में उतरने जा रहे हैं। तीन साल पहले राजनीति से संन्यास का ऐलान कर चुके यशवंत सिन्हा अब ममता बनर्जी के साथ फिर से सक्रिय होने जा रहे हैं। बंगाल में विधानसभा चुनाव के बीच आज यशवंत सिन्हा ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया है। सूत्रों ने बताया है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के कहने पर यशवंत सिन्हा को जॉइन कराया गया है।
सूत्रों का कहना है कि राज्यसभा में टीएमसी के सदस्य रहे दिनेश त्रिवेदी के भाजपा प्रवेश के बाद अब ममता बनर्जी की पार्टी को दिल्ली में एक बड़ा फेस चाहिए, जो पार्टी को रिप्रेजेंट कर सके। लिहाजा यशवंत सिन्हा को पार्टी में लाया गया है, जो मोदी सरकार की हमेशा खिलाफत करते रहे हैं। बताया यह भी जा रहा है कि टीएमसी उन्हें राज्यसभा भेज सकती है।
2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से यशवंत सिन्हा बीजेपी से नाराज़ चल रहे थे। इसी नाराज़गी के दौरान उन्होंने पार्टी भी छोड़ दी थी।
हालाँकि यशवंत सिन्हा के बेटे जयंत सिन्हा अब भी बीजेपी में हैं और वे झारखंड के हजारीबाग लोकसभा सीट से सांसद हैं। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वे मंत्री भी बनाए गए थे। यशवंत सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पप लगातार हमला बोलते रहे हैं।
यशवंत सिन्हा 1960 में आईएएस के लिए चुने गए और पूरे भारत में उन्हें 12वाँ स्थान मिला। आरा और पटना में काम करने के बाद उन्हें संथाल परगना में डिप्टी कमिश्नर के तौर पर तैनात किया गया। यशवंत सिन्हा ने 2009 का चुनाव जीता, लेकिन 2014 में उन्हें बीजेपी का टिकट नहीं दिया गया। धीरे-धीरे नरेंद्र मोदी से उनकी दूरी बढ़ने लगी और अंतत: 2018 में 21 वर्ष तक बीजेपी में रहने के बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया।
यशवंत सिन्हा ने कहा था, हाँलाकि मैंने इस बात की हिमायत की थी कि मोदी जी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाया जाए लेकिन 2014 का चुनाव आते-आते मुझे इस बात का आभास हो गया था कि इनके साथ चलना मुश्किल होगा। इसलिए मैंने तय किया कि मैं चुनाव लड़ूंगा ही नहीं।`` यशवंत सिन्हा भारतीय जनता पार्टी में न संघ से आए थे और न ही अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से। 24 साल आईएएस की भूमिका निभाने के बाद वो 1984 में राजनीति में आए। 1990 में वो चंद्रशेखर की सरकार में वित्त मंत्री बने। हालांकि यशवंत सिन्हा ख़ुद इस बात को मानते हैं कि अर्थव्यवस्था में उनकी कोई विशेषज्ञता नहीं थी। सिन्हा ने अपनी किताब
कन्फेशन्स ऑफ अ स्वदेशी रिफॉर्मर` में लिखा है कि उन्होंने केवल 12वीं क्लास में ही अर्थव्यवस्था पढ़ी थी।
00 वित्त मंत्रालय पंसद नहीं
सिन्हा ने इतिहास में ग्रैजुएशन किया था और मास्टर्स में राजनीति शास्त्र को चुना था। इसके बाद उन्होंने सिविल सेवा को अपना करियर बना लिया था। यशवंत सिन्हा ने ख़ुद लिखा है आर्थिक मुद्दों को समझना और वित्त मंत्रालय की चुनौतियों से निपटना दोनों अलग चीज़ें हैं।
इस पृष्ठभूमि को जानने-समझने के बावजूद चंद्रशेखर ने यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्री बनाया। तब भारत की अर्थव्यवस्था गंभीर संकट में थी। 1990 और 91 में भारत जिन आर्थिक संकटों से जूझ रहा था उसे लेकर जाने-माने अर्थशास्त्री और रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर आइजी पटेल ने कहा था कि यह आज़ाद भारत का सबसे बड़ा आर्थिक संकट है।
00 चंद्रशेखर के कार्यकाल में वित्त मंत्री
यशवंत सिन्हा ने अपनी किताब में लिखा है कि तब सुब्रमण्यन स्वामी वित्त मंत्री बनना चाहते थे, लेकिन कई लोग उनके ख़िलाफ़ थे। सिन्हा ने लिखा है कि स्वामी को मनाने के लिए तब वाणिज्य के साथ क़ानून-न्याय जैसे दो-दो मंत्रालय उन्हें दिए गए थे।
सिन्हा ने लिखा है कि वो ख़ुद भी वित्त मंत्री नहीं बनना चाहते थे। उनका मन विदेश मंत्री बनने का था, लेकिन चंद्रशेखर चाहते थे कि देश की अर्थव्यवस्था जिस संकट में है, उससे यशवंत सिन्हा ही निकाल सकते हैं।
हालांकि चंद्रशेखर की सरकार एक साल भी नहीं रही और फिर इस आर्थिक संकट से पीवी नरसिम्हा राव और उनके वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को जूझना पड़ा। जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र में 1998 में सरकार बनी तो एक बार फिर से यशवंत सिन्हा वित्त मंत्री बने।
यह सरकार भी 13 महीने तक ही चली। 1999 में फिर से वाजपेयी की वापसी हुई और यशवंत सिन्हा को वित्त मंत्रालय मिला।